जेके लोन अस्पताल जयपुर के दुर्लभ बीमारी केंद्र की टीम और स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी 1 के एक बच्चे के इलाज में नए आयाम हासिल किया।
इन दो दो रेयर डिजीज से एक साथ ग्रसित होने वाला यह पहला मामला है।
इस 44 दिन के बच्चे का उपचार एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी अल्गलूकोसिडेस एल्फा से शुरू किया गया।
इस उम्र पर यह दवा शुरु करने का भी यह देश में संभवतया पहला ही बच्चा है।
इलाज के लिए उत्तर प्रदेश के आगरा से जेके लोन अस्पताल जयपुर लाया गया।
माता-पिता ने इस बच्चे को 20 दिन की उम्र पर तेज सांस चलने की वजह से दिखाया और आगरा में भर्ती कराया।
आराम नहीं आने और सास की समस्या के बढ़ने की वजह से इस को जयपुर के जेके लोन अस्पताल भेज दिया गया।
सांस की समस्या के साथ साथ शरीर में ढीलापन एवं हरकत कम होने की भी परेशानी थी।
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इस पर जेके लोन के डॉक्टर्स ने इस पेशेंट का डीबीएस सैंपल दिल्ली भेज के जांच कराई जिसमें पांपे नामक रेयर बीमारी की पुष्टि हुई।
साथ ही डॉक्टर ने संदेह होने पर स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी 1 की भी जांच एमएलपीए टेक्नीक से कराई और रोग की पुष्टि की।
पोमपे डिजीज की दवा की कीमत प्रति वर्ष लगभग 25-30 लाख है और इसे आजीवन देने की आवश्यकता है।
यह दवा इस रोगी को अनुकंपा उपयोग कार्यक्रम के माध्यम से उपलब्ध कराई गई है।
स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी 1 की दवा रिसडिप्लाम के अनुकंपा उपयोग के लिए भी अप्लाई किया है।
अल्गुलकोसिडेज़ अल्फ़ा पोम्पे रोगियों के लिए एक द्वैमासिक इंट्रावेनस एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी है
और इसे सभी प्रकार के पोम्पे रोगियों को दिया जा सकता है।
इसे यूएस एफडीए द्वारा 2014 में इन्फेंटाइल-ऑनसेट पोम्पे डिजीज के इलाज के लिए मंजूरी दे दी गई थी
और यह दवा को सनोफी जेंजाइम नामक कंपनी द्वारा डेवलप किया गया था।
रिस्डिप्लाम (एवरेसडी) लगभग 4 करोड़ रुपए सालाना की दवा है।
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यह 2 महीने की उम्र से बड़े बच्चो के लिए मुंह से लेने वाली एक दैनिक दवा है
और सभी प्रकार के स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी के बच्चो को दी जा सकती है।
यह एक स्मॉल मोलेक्यूल ओरल ड्रग है जिसे घर पर ही दिया जा सकता है।
7 अगस्त, 2020 को अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) द्वारा रिस्डिप्लाम को मंजूरी दी गई है,
जो चार वर्षों के भीतर उपलब्ध स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी के लिए तीसरी दवा बनी है।
इस दवा को रोच कम्पनी द्वारा बनाया गया है।
पोम्पे रोग के मरीजों में अल्फा-ग्लूकोसिडेस नामक एक एंजाइम की कमी होती है।
यह रोग लगभग हर 40,000 में से किसी एक बच्चे को होता है
जेनेटिक डिफेक्ट की वजह से होने वाला एक मेटाबॉलिक रोग है।
प्रभावित बच्चे के पैरेंटस इस बीमारी के डिफेक्टिव जीन को कैरी करते है
और खुद इस बीमारियों से पीड़ित नहीं होते है क्युकी हर इंसान में इस जीन की दो कॉपीज होती है।
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अगर किसी भी इंसान के शरीर में इस जीन की एक कॉपी भी नॉर्मल है तो उनको यह बीमारी नहीं होती है।
यह बीमारी लड़के या लड़कियो दोनों को प्रभावित कर सकता है।
यह एंजाइम ग्लाइकोजन नामक संग्रहीत शर्करा को जरूरत पड़ने पर ग्लूकोज में तोड़ता है
जिसका उपयोग शरीर की कोशिकाओं द्वारा ऊर्जा के लिए किया जा सकता है।
यदि यह एंजाइम शरीर में मौजूद नहीं है,
तो ग्लाइकोजन कुछ ऊतकों में, विशेष रूप से मांसपेशियों, हृदय और लिवर में एकत्रित होने लगता है।
ग्लाइकोजन के इकत्रित होने की वजह से दिल का बढ़ने के साथ दिल का काम प्रभावित होने लगता है।
इसके साथ साथ साँस लेने में कठिनाई और मांसपेशियों की कमजोरी भी हो जाती है।
सामान्यतः पोंपे रोग तीन तरह का हो सकता है जो की अलग अलग उम्र पर अपने लक्षण प्रस्तुत करता है।