गांधीनगर: गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले राज्य सरकार की एक बार फिर से परेशानियां बढ़ती हुई नजर आ रही है. चौतरफा आंदोलन का सामने करनी वाली गुजरात सरकार के खिलाफ अब साधु समाज के लोगों ने मोर्चा खोल दिया है. राजकोट में साधु समाज के लोगों ने विधानसभा चुनाव में मतदान नहीं करने के फैसले की घोषणा की है. मंदिरों और आश्रमों को दी गई कृषि भूमि के वारसाई अधिकारों को वापस लेने के लिए सरकार द्वारा की गई कार्रवाई के खिलाफ यह निर्णय लिया गया है.
राजाओं ने मंदिर को दी थी जमीन
गुजरात में 1.30 लाख से अधिक मंदिरों और आश्रमों को रखरखाव के लिए राजशाही के दौरान भूमि दी गई थी. जिनके अधिकार पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिलता था, लेकिन सरकार ने इस अधिकार को छीन लिया और मंदिरों और आश्रमों की भूमि को सरकारी भूमि में शामिल कर रही है. इन जमीनों को वापस लेने की मांग को लेकर साधु समुदाय ने अगले चुनाव में मतदान का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है. मंदिरों और आश्रमों का रखरखाव करने वाले साधु समुदाय के परिवारों के खेती के अधिकार साधु संतों को विरासत में मिलता रहे इस मांग को लेकर मतदान बहिष्कार कर फैसला लिया गया है.
चौतरफा आंदोलन का सामना कर रही है गुजरात सरकार
गौरतलब है कि इससे पहले शिक्षक, चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारी, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, किसान, लोक रक्षक दल भर्ती उम्मीदवार, ड्यूटी पर मारे गए सरकारी कर्मचारियों के परिवार, वन रक्षक, मध्याह्न भोजन कार्यकर्ता, सचिवालय क्लर्क और ग्रामीण कंप्यूटर सहायक, इसके अलावा राज्य सरकार के हजारों पूर्व और वर्तमान कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को लागू करने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया था.
गुजरात सरकार ने 2005 से पहले सेवा में शामिल होने वाले कर्मचारियों के लिए ओपीएस पर सहमति व्यक्त की थी लेकिन इस प्रस्ताव को नेशनल ओल्ड पेंशन रेस्टोरेशन यूनाइटेड फ्रंट ने खारिज कर दिया था. चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के पास ओपीएस, संविदा भर्ती, पे-ग्रेड समानता, स्वास्थ्य बीमा, भविष्य निधि सहित मांगों का 14 सूत्री चार्टर है. जिसके बाद गुजरात चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा के पांच मंत्रियों की टीम बनाई गई थी. इस टीम का काम राज्य में विरोध और आंदोलन को रोकने के लिए लोगों की समस्याओं का संज्ञान लेना था. कुछ मामलों को हल कर लिया गया था लेकिन मामले अभी भी यथावत हैं.
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