2017 में पाटीदार आंदोलन के मद्देनजर सौराष्ट्र और उत्तर गुजरात में भाजपा को बड़ा झटका लगा था, लेकिन मध्य और दक्षिण गुजरात के मजबूत समर्थन ने भाजपा को सत्ता में बनाए रखा था. सूरत शहर बीजेपी का गढ़ माना जाता है. शहर और जिले की कुल 16 सीटों में से बीजेपी ने पिछले चुनाव में 14 सीटों पर जीत हासिल की थी. इनमें से एक सीट उधना थी. नए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट को उसके मिश्रित जाति समीकरण और स्थानीय मुद्दों के कारण भाजपा समर्थक माना गया है. मुख्य रूप से औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण यहां बड़ी संख्या में प्रवासी भी रहते हैं. इस सीट के तहत कुल 2,33,618 मतदाता पंजीकृत हैं, जिसमें सूरत तालुका के अलावा नगर पालिका के पांच वार्ड शामिल हैं.
मिजाज
देशी सुरती और सौराष्ट्र निवासियों के क्षेत्रों के विपरीत, यहां प्रवासी लोगों का वर्चस्व है, स्थानीय मुद्दों के अलावा, राष्ट्रीय मुद्दे भी यहां महत्वपूर्ण बन जाते है. भाजपा के वरिष्ठ नेता नरोत्तम पटेल के दबदबे वाली यह सीट दोनों चुनावों में भाजपा को समर्पित रही है. नरोत्तम पटेल के बाद उनके बेटे ने इस सीट से जीत हासिल की, कम मतदान के बावजूद, भाजपा उम्मीदवार यहां एक अच्छा अंतर हासिल करने में सफल हुए थे. यहां बड़ी संख्या में बुनाई मिलें हैं, जिनमें गुजरातियों का वर्चस्व है, और प्रवासी स्वतंत्र मनोदशा दिखाने के बजाय गुजराती मालिकों के मूड के अनुसार मतदान करने के आदी हैं.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
2012 नरोत्तम पटेल भाजपा 32,754
2017 विवेक पटेल भाजपा 42,528
कास्ट फैब्रिक
लगभग 65,000 प्रवासियों की आबादी वाले इस निर्वाचन क्षेत्र में मराठी और बिहार, उड़ीसा के लोग प्रमुख हैं. इसके अलावा 18,000 पाटीदार और 12,000 कोली पटेल भी महत्वपूर्ण हैं. वे चुनाव के मूड को आकार देने में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं.
समस्या
औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण प्रदूषण को स्थानीय स्तर पर सबसे बड़ा मुद्दा माना जाता है. वायु और जल प्रदूषण की बार-बार शिकायत करने के बावजूद, इसे दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. आवास योजनाओं में गड़बड़ी की शिकायतें आम हैं. मुख्य रेलवे लाइन पर स्थित होने के कारण यहां क्रासिंग पर जाम की समस्या का समाधान नहीं हो सका है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
भाजपा के शीर्ष नेता नरोत्तम पटेल के बेटे विवेक पटेल ने अपने पिता के उत्तराधिकारी के रूप में अच्छे अंतर से सीट जीती थी. लेकिन स्थानीय स्तर पर निष्क्रियता के चलते इस बार उन्हें बदल दिया गया है. उनकी जगह बीजेपी ने बुनकर संघ के संस्थापक अध्यक्ष और कड़वा पाटीदार समुदाय के नेता मनु पटेल को मौका दिया है. मनु पटेल यहां लंबे समय से सक्रिय हैं. शहर भाजपा अध्यक्ष भी रह चुके हैं. बीजेपी ने उम्मीदवार बदलकर सत्ता विरोधी लहर का मूड भी बदल दिया है.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस ने इस सीट से पुराने जोगी धनसुख राजपूत को मैदान में उतारा है. धनसुख राजपूत इससे पहले 2012 में भाजपा के नरोत्तम पटेल से चुनाव हार चुके हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर लगातार जनसंपर्क बनाए रखा है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी ने अभी तक उधना सीट से उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है. सूरत शहर और आसपास के इलाकों में आम आदमी पार्टी का प्रभाव है लेकिन उधना में ऐसा नहीं कहा जा सकता है. यहां प्रवासी आबादी के कारण मुख्य रूप से भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई की प्रबल संभावना है.
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