अहमदाबाद की औद्योगिक पहचान के रूप वटवा, जशोदानगर, सीटीएम क्षेत्र कपास मिलों और विभिन्न मशीनरी, स्पेयर पार्ट्स और औजारों की दुकानों के रूप में पहचाना जाता था. स्वतंत्रता के बाद के औद्योगिक विकास में, अहमदाबाद-वडोदरा राजमार्ग पर एक औद्योगिक क्षेत्र होने के नाते, वटवा को वड़ोदरा के जीएसएफसी, आईपीसीएल, एलेम्बिक, पेट्रोफिल जैसी रासायनिक कंपनियों के सहायक उद्योगों के लिए एक रासायनिक क्षेत्र के रूप में विशेष स्वीकृति मिली. तब से यह क्षेत्र विभिन्न उद्योगों का केंद्र बन गया है. रासायनिक उद्योग के अलावा, वटवा टूल इंजीनियरिंग, स्पेयर पार्ट्स, मशीनरी उद्योगों से भरा हुआ है और अहमदाबाद पूर्वी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है. 2008 में नए परिसीमन के समय, अहमदाबाद पूर्व लोकसभा सीट के पड़ोसी गांवों को मिलाकर वटवा विधानसभा सीट अस्तित्व में आई. नगर पालिका के दो वार्डों के अलावा यह सीट आसपास के गांव गात्रोड, मामदपुर, गेरतपुर, चेनपुर, हाथीजन, सिंगारवा, वस्त्राल, रामोल तक फैली हुई है. भौगोलिक दृष्टि से बड़ा क्षेत्र होने के साथ ही यहां मतदाताओं की संख्या भी काफी अधिक है. यहां कुल 3,21,646 मतदाता पंजीकृत हैं.
मिजाज
बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्र होने के अलावा, वटवा में किसी विशेष जाति समुदाय का प्रभुत्व नहीं कहा जा सकता है. चूंकि अलग-अलग गांवों के समीकरण भी अलग-अलग होते हैं, इसलिए यहां सभी को एक साथ रखने और सभी को महत्व देने का काम बेहद कठिन और जटिल माना जाता है. यहां हुए दोनों चुनावों में बीजेपी के दिग्गज नेता प्रदीप सिंह जडेजा ने इस मुश्किल सीट पर अपना दबदबा कायम किया और दोनों बार अच्छे अंतर से जीत हासिल की. लेकिन अब जब प्रदीप सिंह उम्मीदवार नहीं है तो इस स्थिति में कोई भी निश्चित रूप से यह नहीं कह सकता है कि इस बार भी बीजेपी की जीत होगी.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
2012 प्रदीप सिंह जडेजा बीजेपी 46,932
2017 प्रदीप सिंह जडेजा बीजेपी 62,380
कास्ट फैब्रिक
इस सीट पर करीब 60,000 पाटीदार सबसे ज्यादा हैं लेकिन अन्य समुदायों की आबादी भी खासी है. जिसमें 50,000 मुस्लिम, 50,000 दलित, 40,000 ठाकोर, 30,000 भरवाड़ और 35,000 प्रवासी हैं, जिसकी वजह से कोई भी समुदाय कारक हावी नहीं हो सकता है. प्रवासी भारतीयों में उत्तर भारतीयों का अनुपात काफी ज्यादा है. मुस्लिम और दलित वोटर भी गेम चेंजर हो सकते हैं. यह कास्ट फैब्रिक किसी भी पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण होता है.
समस्या
औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण यहां वायु प्रदूषण की समस्या सबसे खास है. पीने योग्य पानी की अशुद्धता और रासायनिक संदूषण की घटनाएं भी अक्सर होती हैं. आसपास के गांवों में कृषि भूजल पर निर्भर नहीं रह सकती क्योंकि मिट्टी का स्तर पूरी तरह से नीचे चला गया है. गंदे पानी के निस्तारण की समस्या भी बहुत बड़ी है. सामान्य बारिश में भी वटवा और आसपास के इलाकों में जलभराव हो जाता है. इस निर्वाचन क्षेत्र से गुजरने वाली सरदार पटेल रिंग रोड ऊंचाई पर है, जिससे सड़क के दोनों ओर के गांवों में जल निकासी की समस्या पैदा हो जाती है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
प्रदीप सिंह जडेजा की व्यापक पहुंच और विशेष रूप से गृह मंत्री के रूप में उनकी स्थिति ने इस बड़े और जातिगत समीकरण के रूप में पेचीदा मानी जा रही सीट ने भाजपा का समर्थन करना जारी रखा था. कोरोना काल में भी यहां सेवा कार्य कर प्रदीप सिंह को गैर गुजरातियों से विशेष सराहना मिली थी. बीजेपी की नो रिपीट थ्योरी बड़े नेताओं पर लागू हुई है, जिससे प्रदीप सिंह का भी टिकट कट गया है. बीजेपी ने प्रदीप सिंह के विश्वासपात्र और वस्त्राल वार्ड के पूर्व अध्यक्ष बाबूसिंह जादव को टिकट दिया है. गैर गुजराती वोट को साधने के लिए बाबूसिंह और प्रदीप सिंह काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस ने यहां पिछले दो चुनावों में पाटीदार उम्मीदवार खड़ा किया था लेकिन जीत हासिल नहीं कर पाने के बाद इस बार अपनी रणनीति में बदलाव किया है. कांग्रेस ने बलवंत गढ़वी को चुनावी मैदान में उतारा है. अहमदाबाद जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके बलवंत गढ़वी की उम्मीदवारी का कड़ा विरोध किया गया था. कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने उनका विरोध करते हुए उनको आयातित उम्मीदवार करार दिया था. हालांकि गढ़वी ने समय रहते ही अपने खिलाफ हो रहे विरोध को कुचल दिया है, लेकिन अब देखना यह है कि संगठन और कार्यकर्ता मतदान केंद्र तक उनका कितना साथ देते हैं.
तीसरा कारक
यहां से आम आदमी पार्टी के अहमदाबाद शहर उपाध्यक्ष बिपिन पटेल चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसा लगता है कि इतने बड़े क्षेत्र में जमीनी संगठन के बिना प्रचार करना उनके लिए बहुत कठिन बना दिया है. आप की गारंटी से आकर्षित सहज मतदाताओं को छोड़कर उनकी उम्मीदवारी से कोई खास फर्क पड़ने की संभावना नहीं है. यहां लड़ाई मुख्य रूप से भाजपा और कांग्रेस के बीच होगी. लेकिन मौजूदा हालात को देखने पर भाजपा का पलड़ा भारी लगता है.
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