प्राचीन वटपद्र के अपभ्रंश होकर वडोदरा भले ही हो गया हो, लेकिन इसकी एक पहचान सयाजीनगरी के रूप में भी है. एक दूरदर्शी और व्यावहारिक शासक क्या कर सकता है, इसके उदाहरण के रूप में भावनगर, गोंडल और वडोदरा राजघरानों के नाम दिए जाने चाहिए. वडोदरा को विश्वस्तरीय सुंदर, सुसंस्कृत और कलाप्रेमी शहर बनाने का पूरा श्रेय महाराजा सयाजीराव गायकवाड को जाता है. सयाजीराव की बेनमून कलादृष्टि का परिचय यानि सयाजीबाग (कमाटीबाग) और महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय और इन दोनों से मिलकर बना पूरा क्षेत्र सयाजीगंज के नाम से जाना जाता है. मराठी संस्कारिता और गुजराती अस्मिता के संगम स्थान के समान वडोदरा का सयाजीगंज क्षेत्र आवासीय और व्यावसायिक क्षेत्रों का मिश्रण है. पुराने और आधुनिक वडोदरा के बीच की कड़ी सयाजीगंज से होकर गुजरती है. सयाजीगंज विधानसभा सीट पर कुल 3,20,773 मतदाता पंजीकृत हैं.
मिजाज
जब भाजपा के पूर्ववर्ती जनसंघ को अभी तक गुजरात में कहीं भी विशेष पहचान नहीं मिली थी, तब वडोदरा में मकरंद देसाई और राजकोट में चिमनभाई शुक्ल के माध्यम से दक्षिणपंथी विचारधारा को पैर जमाने का मौका मिला था. मकरंद देसाई और उनके जैसे अन्य जमीनी भाजपा कार्यकर्ताओं से सयाजीगंज विधानसभा सीट के लिए चुने गए सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी जसपाल सिंह 1985 के बाद में भाजपा में शामिल होने के बाद से इस सीट को भाजपा का गढ़ माना जाता है. 1980 में यहां कांग्रेस प्रत्याशी शिशिर पुरोहित के जीतने के बाद आज तक कांग्रेस के सिंबल पर कोई सफल नहीं हुआ.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 जसपाल सिंह बीजेपी 36,671
2002 जीतू सुखडिया बीजेपी 1,25,380
2007 जीतू सुखडिया बीजेपी 75,941
2012 जीतू सुखडिया बीजेपी 58,237
2017 जीतू सुखडिया बीजेपी 59,132
कास्ट फैब्रिक
यहां ओबीसी समुदाय इस मायने में अद्वितीय है कि यहां कोई जातिगत समीकरण नहीं है जो राजनीतिक रूप से समीचीन हो क्योंकि यहां कई जातियां हैं. फिर भी वड़ोदरा का मिजाज निराला है. यह इकलौता ऐसा शहर है जहां नगरपालिका, विधानसभा या लोकसभा चुनाव में जातिगत समीकरणों की अहमियत नगण्य है. यहां मतदान मुद्दा आधारित अपील और स्थायी राजनीतिक झुकाव पर आधारित है.
समस्या
इस इलाके में जाम और ट्रैफिक बड़ी समस्या है. मानसून में सीवेज निस्तारण और बाढ़ की समस्या भी होती है. अहमदाबाद, सूरत की तुलना में यहां ट्रैफिक पूर्व नियोजित नहीं है. इस क्षेत्र की खराब सड़कें स्मार्ट सिटी के वादों का मजाक बनाती हैं. फुटपाथ और लॉरी के दबाव मुख्य सड़कों पर यातायात को बाधित करते हैं और उनके लिए अलग जगह आवंटित करने की कोई योजना नहीं बनाई गई है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
लगातार चार बार जीतने वाले जीतू सुखडिया पर नो-रिपीट थ्योरी लागू होने से पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की घोषणा करके अपनी गरिमा बचा ली. जिसके बाद बीजेपी ने आखिरकार मेयर केयूर रोकड़िया को चुन लिया है. हालांकि मेयर के रूप में केयूर रोकड़िया का कार्यकाल विवादास्पद और अप्रभावी रहा है, लेकिन वे भाजपा के प्रतिबद्ध मतदाताओं, मोदी के करिश्मे और मजबूत भाजपा संगठन के बल पर सवार नजर आते हैं.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस ने यहां मेयर के खिलाफ लड़ाई की कमान नगर पालिका में नेता प्रतिपक्ष अमी रावत को सौंपी है. पर्यावरण के क्षेत्र में अहम काम करने वाली अमीबेन और उनके पति नरेंद्र रावत इस क्षेत्र के पुराने खिलाड़ी हैं. आक्रामक छवि वाले रावत दंपत्ती लगातार नगर निगम के खराब प्रदर्शन और भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर भाजपा प्रत्याशी को बचाव की मुद्रा में ला रहे हैं. यहां पहली बार भाजपा के लिए सतर्क रहने का समय आ गया है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी से स्वेजल व्यास यहां से चुनाव लड़ रहे हैं. इवेंट मैनेजमेंट के क्षेत्र में कार्यरत स्वेजल व्यास कोरोना काल में अपने सेवा कार्यों से चर्चा में आए थे. राशन किट वितरण, दवा में सहायता और विशेष रूप से कोरोना मृतकों के अंतिम संस्कार जैसे कार्यों की सराहना के बाद वह आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए और अब सयाजीगंज सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. अनुभवहीन होने के कारण इतने बड़े क्षेत्र में मतदाताओं तक पहुंचना उनके लिए मुश्किल नजर आ रहा है. कुल मिलाकर बीजेपी और कांग्रेस में सीधी टक्कर है. जिसमें बीजेपी की स्थिति इस बार बिल्कुल आसान भी नजर नहीं आ रही है.
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