सम्राट शाहजहां के समय में गुजरात आए बाबी मुसलमान जो वे मूल रूप से पूर्वी अफगानिस्तान से एक युद्ध करने वाली जाति थी. मुगल साम्राज्य के पतन के बाद, वे अपने-अपने क्षेत्रों के नवाब बन गए और इस तरह गुजरात के जूनागढ़, पालनपुर में बाबी वंश के दो प्रमुख राज्य अस्तित्व में आए. इन दोनों राज्यों के बाबी वंशजों ने अपने पराक्रम से रजवाड़ा की स्थापना कि जिसमें सरदारगढ़, पाजोद, माणावदर, राधनपुर और बालासिनोर का नाम शामिल है. मध्य गुजरात के महिसागर जिले के बालासिनोर को दूसरे तरीके से याद किया जाना चाहिए. ‘मारो य जमानो हतो, कोण मानशे’ जैसी गजलों के सर्जक रुस्वा मझलुमी पाजोद राज्य के उत्तराधिकारी थे और स्वतंत्रता के बाद विरासत पर कानूनी लड़ाई के बाद बालासिनोर में रिश्तेदारों के साथ रहते थे. आज वह नवाबी जाहोजलाली पुराने महलों के जीर्ण-शीर्ण खंडहरों में रह गई है. बाबियो का बालासिनोर को अब गुजरात विधानसभा में सीट संख्या 121 के रूप में जाना जाता है. इस निर्वाचन क्षेत्र के तहत कुल 2,83,465 मतदाता पंजीकृत किए गए हैं, जिसमें बालासिनोर, वीरपुर तालुका और कपड़वंज तालुका के कई गांव शामिल हैं.
मिजाज
नवाबी शासन के तहत उखाड़े गए बालासिनोर का राजनीतिक मिजाज भी उतार-चढ़ाव वाला रहा है. गुजरात की राजनीति में भले किसी भी तरीके का बदलाव हो लेकिन इस सीट का झुकाव कांग्रेस की ओर ही रहा है. कुछ अपवादों को छोड़कर, भाजपा उम्मीदवारों को शायद ही कभी सफलता मिली हो. बालासिनोर सीट के कुल 13 चुनावों में कांग्रेस ने सबसे अधिक 7 बार, भाजपा ने 3 बार, स्वतंत्र पक्ष, निर्दलीय और राजपा इन तीनों ने एक-एक बार जीत हासिल की है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 मानसिंह चौहान राजपा 17560
2002 राजेश पाठक भाजपा 5374
2007 मानसिंह चौहान कांग्रेस 15784
2012 मानसिंह चौहान कांग्रेस 17171
2017 अजीत सिंह चौहान कांग्रेस 10602
कास्ट फैब्रिक
मुख्य रूप से ओबीसी क्षत्रिय मतदाताओं वाली इस सीट पर चौहान, परमार, झाला और सोलंकी समुदाय का दबदबा है. इसके बाद लगभग 18,000 दलित और लगभग 15,000 मुस्लिम मतदाता भी निर्णायक माने जाते हैं. इस सीट पर बीजेपी के प्रतिबद्ध वोट बैंक माने जाने वाले वफादार मतदाताओं की संख्या कम है. मानसिंह चौहान इस सीट पर तीन दशक से शासन कर रहे हैं. वह बीजेपी, राजप और कांग्रेस तीनों पार्टियों से जीत हासिल की है. दोनों प्रमुख दल क्षत्रिय प्रत्याशी को ही मौका देने की पैरवी करते रहे हैं. हालांकि, 2002 में राजेश पाठक ने बीजेपी के टिकट पर जीत हासिल कर सरप्राइज दिया था.
समस्या
काफी छोटा शहर होने के बावजूद यहां ट्रैफिक की समस्या सबसे ज्यादा है, इसे विडंबना ही कहा जाना चाहिए. करीब डेढ़ दशक से बाईपास की मांग लंबित रही थी. इसे मंजूरी मिलने के बाद बाईपास का काम शुरू होने में एक दशक और बीत चुका है. दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा डायनासोर पार्क होने के बावजूद यहां पर्यटन का विकास नहीं हुआ है. परिवहन में असुविधा आम बात है. बड़े उद्योगों की पूर्ण अनुपस्थिति ने युवाओं को उच्च शिक्षा या रोजगार के लिए कहीं और जाने के लिए मजबूर किया है. यद्यपि इस क्षेत्र में कृषि और कृषि श्रम के साथ-साथ पशुपालन मुख्य व्यवसाय हैं, फिर भी सिंचाई की समस्या का समाधान नहीं हुआ है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
दस हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीते अजित सिंह चौहान के भाजपा में शामिल होने की उम्मीद है, लेकिन वह अभी भी कांग्रेस के साथ हैं. स्थानीय स्तर पर उनकी छाप एक मजबूत नेता की है. ओबीसी क्षत्रिय समुदाय में भी उन्हें एक सुलभ और सक्षम नेता के रूप में माना जाता है. उनका टिकट पक्का है लेकिन इस बार जीतने के लिए उन्हें बीजेपी विरोधी वोटबैंक की सही पहचान करनी होगी.
प्रतियोगी कौन?
इस बात की प्रबल संभावना है कि भाजपा इस बार मानसिंह चौहान के परिवार से एक युवा चेहरा उतारेगी. इसके अलावा दिग्गज महिला नेता लीलाबेन आंकोलिया लगातार दो बार से दावेदारी कर रही हैं. इस बार उनके परिवार से किसी को मौका मिल सकता है.
तीसरा कारक
यहां आम आदमी पार्टी काफी अहम होने वाली है. युवा और क्षत्रिय ठाकोर सेना के गुजरात अध्यक्ष राजेंद्र सिंह बारैया के आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार बनने की संभावना है. इससे पहले वह महिसागर जिला कांग्रेस के महासचिव भी थे. इसलिए उनकी उम्मीदवारी कांग्रेस के लिए नुकसानदेह होगी.
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