अहमदाबाद महानगर तेजी से मेट्रो शहर की श्रेणी में आ रहा है. मूल अहमदाबादी यहां अल्पसंख्यक हो गए हैं और अब गैर गुजरातियों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है. जैसे-जैसे शहर का सामाजिक ताना-बाना बदलता है, स्वाभाविक रूप से राजनीतिक दृष्टिकोण और मतदान के पैटर्न में भी बदलाव आता है. गुजरात के तमाम शहरी इलाकों की तरह अहमदाबाद को भी हमेशा बीजेपी को समर्पित माना जाता है, लेकिन अहमदाबाद शहर की कुछ विधानसभा सीटों पर बीजेपी को पैर पसारने का मौका ही नहीं मिला है उन सीटों में पहला नाम दानीलिमडा का आता है. नए परिसीमन के बाद पुरानी शेहरकोटड़ा सीट को पूरी तरह से हटा दिया गया और जमालपुर और मणिनगर सीटों के कुछ क्षेत्रों को सीट में जोड़ा गया और इसका नाम बदलकर दानीलिमडा सीट कर दिया गया. इस सीट में अहमदाबाद शहर के तीन वार्डों के अलावा पीपलज, साईपुर, शाहवाड़ी जैसे उपनगर भी शामिल हैं. 2,30,680 वोटरों वाली यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है.
मिजाज
शहरी अनुसूचित जातियों को काफी हद तक कांग्रेस का समर्पित वोटबैंक माना जाता है. पुरानी शहरकोटड़ा सीट भी इससे बाहर नहीं रही. कांग्रेस के दिग्गज नेता नरसिंह मकवाना और मनुभाई परमार ने लगातार बड़े अंतर से सीट जीतते रहे, जिससे स्थानीय मतदाताओं का झुकाव कांग्रेस की ओर हो गया. तमाम चढ़ाई कौशल के बावजूद बीजेपी ने 1995 और 2002 को छोड़कर इस सीट पर जीत हासिल नहीं की है. शहरकोटड़ा और अब दानीलिमडा सीटों के मतदाता भाजपा की सांप्रदायिक, शहरी और विशेष रूप से स्वर्ण-समर्थक नीतियों को खारिज करने की प्रवृत्ति दिखा रहे हैं.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
2012 शैलेश परमार कांग्रेस 14,301
2017 शैलेश परमार कांग्रेस 32,510
(जब से यह सीट परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई है, तब से अब तक यहां दो चुनाव हो चुके हैं)
कास्ट फैब्रिक
60% मुस्लिम और 22% दलितों वाली इस सीट पर दलित-मुस्लिम का अनोखा मेल है. यहां स्वर्ण मतदाताओं की संख्या नगण्य है और अन्य समुदायों में लोहार, साधु, ठाकोर, ईसाई समुदाय के मतदाता विशेष रूप से महत्वपूर्ण नहीं हैं. यहां तक कि साम्प्रदायिक दंगों के दौरान भी इस इलाके में मुसलमानों और हिंदुओं के बीच कोई बड़ी घटना नहीं हुई थी. जिससे बीजेपी के लिए यहां भय की राजनीति करना भी मुश्किल है. स्थानीय दलितों में, अधिकांश परिवार के मुखिया कपड़ा उद्योग के उत्कर्ष के दौरान रोजगार की तलाश में उत्तर गुजरात से चले गए और दलित अधिकारों के प्रति बहुत जागरूक माने जाते हैं.
समस्या
अहमदाबाद जैसे शहर का इलाका होने के बावजूद यहां की प्रमुख समस्याएं गंदगी, बेतरतीब निर्माण, अवैध अतिक्रमण और असामाजिक तत्वों दबंगई है. स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत यहां आवंटित तीन बहुमंजिला पार्किंग परिसरों में से किसी का भी निर्माण नहीं हो सका है. बीआरटीएस के कारण सड़कें संकरी होने से स्थानीय व्यापारियों को दिनभर जाम का सामना करना पड़ा है. मुख्य रूप से निगम स्तर पर ये समस्याएं विधानसभा चुनाव में चर्चा का विषय बनी रहती हैं.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
अपने विधायक पिता मनुभाई परमार से अलग पहचान बनाने पर जोर देने वाले शैलेश परमार कभी शशांक मनहरकुमार देशभक्त नाम का इस्तेमाल करते थे. उन्होंने इस सीट से दो बार जीतकर अपने पिता की विरासत को बरकरार रखा है. लंबे वक्त से चर्चा चल रही थी कि वह भाजपा में शामिल हो जाएंगे और किसी भी समय कैबिनेट मंत्री बन जाएंगे, लेकिन इस चर्चा पर उन्होंने विराम लगा दिया है. शैलेश परमार अध्ययनशील और जनसंपर्क रखने वाले विधायक हैं. इसलिए जितनी आसानी से वह स्थानीय सड़कों पर लोगों से बातचीत कर सकते हैं, उतनी ही आसानी से विधानसभा में भी बोल सकते हैं.
प्रतियोगी कौन?
बीजेपी के किसी भी दलित उम्मीदवार के लिए इस सीट से चुनाव लड़ना आखिरी पसंद रहा है. भाजपा ने लगभग हर चुनाव में यहां प्रत्याशी बदले हैं. बीजेपी ने इस बार शिक्षित युवा नरेश व्यास को मैदान में उतारा है, जिनकी पृष्ठभूमि उत्तर गुजरात से है. स्थानीय स्तर पर बीजेपी का संगठन काफी मजबूत है. हालांकि, बीजेपी को अपने संगठन या अपने उम्मीदवार की तुलना में आम आदमी पार्टी और AIMIM पर तीसरे और चौथे कारक के रूप में अधिक भरोसा करना पड़ता है.
तीसरा कारक
यहां आम आदमी पार्टी के अलावा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के भी निर्णायक रहने की संभावना है. आप के उम्मीदवार के तौर पर स्थानीय नेता दिनेश कपाड़िया के नाम की घोषणा पहले ही की जा चुकी है. एआईएमआईएम ने यहां से कौशिका परमार को मौका दिया गया है. एक महिला उम्मीदवार के रूप में, कौशिका दलित महिलाओं के वोट बटोरने की उम्मीद कर रही हैं. सभी चार उम्मीदवार दलित हैं और अधिकांश मतदाता मुस्लिम हैं, इस बात की पूरी संभावना है कि वही निर्णायक होगा.
#बैठकपुराण भावनगर (ग्रामीण): पचास पचास कोस दूर ‘भाई’ का नाम ही काफी है