हालोल शहर उतना ही प्राचीन है जितना कि पावागढ़ की महाकाली मंदिर, पावागढ़ के पताई रावल की शीतकालीन राजधानी का दर्जा प्राप्त हालोल किसी जमाने में जैन धर्म का एक प्रमुख केंद्र था. प्रसिद्ध श्रेष्ठ वस्तुपाल तेजपाल का डेरा आज भी हालोल के आसपास देखा जाता है. गुजरात के सुल्तान महमूद बेगड़ा द्वारा पावागढ़ पर विजय प्राप्त करने के बाद हालोल मुस्लिम शासन के अधीन आ गया था. महमूद ने स्वयं अपने द्वारा जीते गए प्रत्येक शहर के हिंदू मंदिरों को विकृत कर दिया था, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि गंगाधर नाम के एक हालोल ब्राह्मण के श्राप के डर से, उन्होंने यहां एक भी हिंदू मंदिर को ध्वस्त करने के बजाए मंदिरों के रखरखाव के लिए जमीन दी थी. अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ, हालोल आज मध्य गुजरात के विनिर्माण केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है. यहां एम.जी. मोटर्स, हीरो मोटर्स, सीमेंस जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की इकाइयां फलफूल रही हैं. विधानसभा सीट संख्या 128 वाले हालोल निर्वाचन क्षेत्र में हालोल शहर, तालुका के अलावा रिंछ अभयारण्य के लिए प्रसिद्ध जांबुघोड़ा तालुका और घोघंबा के कुछ गांव शामिल हैं. पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 2,71,631 हैं.
मिजाज
पहले चुनाव में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित यह सीट उसके बाद के तमाम चुनाव में सामान्य वर्ग में रही है. सत्तारूढ़ दल से ज्यादा उम्मीदवार के प्रति वफादार रहने वाली यह सीट कांग्रेस और भाजपा दोनों को बराबर का मौका देती रही है. उदेसिंह बारिया जैसे लोकप्रिय नेता के चुनाव लड़ने तक कांग्रेस को जीताने वाली यह सीट जनता के बीच रहे जयद्रथ सिंह परमार जैसे दिग्गज भाजपा नेता को भी कामयाबी दे चुकी है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 उदेसिंह बारिया कांग्रेस 15636
2002 जयद्रथ सिंह परमार भाजपा 49056
2007 जयद्रथ सिंह परमार भाजपा 16189
2012 जयद्रथ सिंह परमार भाजपा 33206
2017 जयद्रथ सिंह परमार भाजपा 57034
कास्ट फैब्रिक
लगभग 18% क्षत्रिय मतदाताओं के साथ इस सीट पर कोली, दलित और मुस्लिम आबादी भी काफी है. हालांकि विधानसभा चुनाव में क्षत्रिय उम्मीदवारों का दबदबा रहा है. क्षत्रिय उम्मीदवारों ने 13 में से 12 बार जीत हासिल की है. कांग्रेस ने जयद्रथ सिंह परमार को हराने के लिए क्षत्रिय के खिलाफ कोली, दलित, मुस्लिम समीकरण बैठाने की कोशिश की लेकिन असफल रही.
समस्या
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मैन्युफैक्चरिंग हब होने के बावजूद यहां स्थानीय लोगों को स्थायी नौकरी नहीं मिलने की व्यापक शिकायतें हैं. अनुबंध आधारित नौकरियां नवीकरणीय नहीं हैं. परिणामस्वरूप रोजगार के मामले में कोई लाभ नहीं है. हालांकि पावागढ़ और चांपानेर में विश्व धरोहर स्थल होने के बावजूद यहां पर्यटन विकास का कोई फायदा नहीं दिख रहा है. मंची विकसित होने पर हलोल को सीधा फायदा होगा. लेकिन योजना अभी कागजों पर ही है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
भाजपा के जयद्रथ सिंह परमार यहां से चार बार से चुनाव लगातार जीत रहे हैं. लगभग 15 हजार वोटों की बढ़त के साथ पहला चुनाव जीतने के बाद पिछले चुनाव तक उन्होंने अपनी बढ़त करीब 57 हजार वोटों तक बढ़ा ली है, जो स्थानीय स्तर पर उनकी लोकप्रियता को दर्शाता है. जयद्रथ सिंह अच्छे-बुरे अवसर पर निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के बीच पहुंचने के लिए जाने जाते हैं, हालांकि, इस बार इस बात की प्रबल संभावना है कि वे नो-रिपीट थ्योरी की वजह से उनका टिकट कट सकता है. लेकिन इन हालात में स्थानीय स्तर पर चर्चा है कि टिकट जयद्रथ सिंह के परिवार से किसी को दिया जाएगा या फिर वह जिसे वह कहेंगे पार्टी उसी को चुनावी मैदान में उतारेगी.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस ने जयद्रथ सिंह की विजय रथ को रोकने के लिए यहां कोली, दलित, मुस्लिम समीकरण बनाने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हुई. इस बार कांग्रेस पुरानी गलतियों को सुधार कर क्षत्रिय उम्मीदवार को टिकट देने की तैयारी कर रही है. इसलिए चेतनसिंह परमार, गजेंद्रसिंह परमार का नाम मुख्य दावेदारों की लिस्ट में सबसे पहले आता है. पंचायत चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद उसके लिए विधानसभा में वापसी करना मुश्किल है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी यहां विशेष रूप से तस्वीर में नहीं है. चंपानेर के पास ओवैसी की पार्टी ने रैली की थी उसके बाद भी पार्टी के पक्ष में किसी भी तरीके का माहौल बनता नहीं दिख रहा है. जिसकी वजह से कहा जा सकता है कि यहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर होना तय है.
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