सीट अपेक्षाकृत छोटी है, जिसमें सूरत के शहरी क्षेत्र के चार वार्ड और तालुका के कई गांव शामिल हैं. भविष्य के शहरीकरण के मद्देनजर वराछा, कतारगाम से अलग होने के बाद 2008 के नए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट पर अब तक दो चुनाव हो चुके हैं. हीरा और कढ़ाई उद्योग से जुड़े लोगों के मध्यवर्गीय क्षेत्र के रूप में यह सीट प्रमुख है. सूरत के बाकी हिस्सों की तुलना में यहां की जरूरतें भी अलग हैं लेकिन यहां का राजनीतिक झुकाव काफी हद तक सूरत के अनुरूप रहा है. कड़ी मेहनत से नई पहचान बनाने वाले सौराष्ट्र के मेहनती लोगों का यह क्षेत्र आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक मोर्चों पर भी तेजी से नई पहचान बना रहा है.
मिजाज
पुरानी वराछा और कतारगाम सीटों से अलग होने के बाद भी इस निर्वाचन क्षेत्र ने पुरानी सीटों का मिजाज बरकरार रखा है. नए परिसीमन के बाद हुए दोनों चुनावों में यहां बीजेपी प्रत्याशी को सफलता मिली है. पाटीदार आरक्षण आंदोलन का असर यहां व्यापक रूप से देखा गया था. चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा उम्मीदवारों को सोसायटी में एंट्री नहीं देना आम बात हो गई थी. लेकिन नतीजों में इसका कोई खास असर नहीं दिखा. इस बार ऐसा कोई निर्णायक कारक न होने के बावजूद भी बीजेपी के लिए इस सीट पर जीत का सिलसिला बरकरार रखना आसान नहीं होगा.
साल विजेता पार्टी मार्जिन
2012 जनक बगदानावाला बीजेपी 49,439
2017 प्रवीण घोघारी भाजपा 35,598
कास्ट फैब्रिक
पाटीदार समुदाय की आबादी 60 फीसदी के आसपास है, इस क्षेत्र में ज्यादातर भावनगर और अमरेली जिलों के लेउवा पटेल हैं. इसके अलावा इन दोनों जिलों के पंचोली अहीर समुदाय की आबादी भी काफी है. इसके अलावा सौराष्ट्र के मोची, दर्जी, प्रजापति समुदायों की आबादी भी काफी है. चूंकि इनमें से प्रत्येक समुदाय सौराष्ट्र में अपने पैतृक गांवों से निकटता से जुड़ा हुआ है इसलिए सौराष्ट्र के मुद्दों का यहां व्यापक प्रभाव है.
समस्या
तेजी से विकसित हो रहे इस निर्वाचन क्षेत्र में जल निकासी और बेतरतीब यातायात के साथ-साथ पार्किंग की कमी प्रमुख समस्याएं हैं. शहर नियोजन की स्पष्ट दूरदर्शिता के बिना बेतरतीब ढंग से विकसित सोसायटियों के कारण भीड़भाड़ काफी ज्यादा है. निम्न मध्यम वर्ग की जरूरतों को पूरा करने वाली आवास परियोजनाओं में यह आम होता जा रहा है कि जल निकासी या स्वच्छता का ध्यान नहीं रखा जाता है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
2012 के चुनाव में यहां जनक काछड़िया (बगदानावाला) ने भारी अंतर से जीत हासिल की थी. लेकिन भाजपा ने यहां प्रवीण घोघारी को इस अनुमान के साथ मैदान में उतारा कि पाटीदार आंदोलन के बाद जो आक्रोश पैदा हुआ, वह उन्हें प्रभावित करेगा. घोघारी का मार्जिन कम हुआ लेकिन सीट बच गई थी. इस बार भी घोघारी दावेदार हैं. लेकिन बगदानावाला भी इस सीट को फिर से वापस हासिल करने के लिए लॉबिंग कर रहे हैं.
प्रतियोगी कौन?
2012 में कांग्रेस की ओर से खड़े हुए जयसुख झालावाड़िया भी दावेदारी में सबसे आगे हैं. ऐसी संभावना थी कि कांग्रेस पाटीदार के खिलाफ पंचोली अहीर उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारेगी, लेकिन अब आम आदमी पार्टी ने भी पाटीदार को मैदान में उतारने का ऐलान कर दिया है, इसलिए कांग्रेस भी पटेल समुदाय से ही अपना उम्मीदवार उतारेगी.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी के मनोज सोरठिया इस सीट पर गेम चेंजर साबित हो सकते हैं. नगर निगम के लिए चुने जाने के बाद से सोरठिया स्थानीय स्तर पर काफी सक्रिय हैं. जिससे इनकी लोकप्रियता काफी ज्यादा है. पाटीदारों के अलावा उन्हें अन्य समुदायों का भी समर्थन मिल सकता है. मध्यमवर्गीय क्षेत्र होने के कारण वह आम आदमी पार्टी की 8 गारंटी के साथ मतदाताओं का दिल जीतने की कोशिश करेंगे. कुल मिलाकर सोरठिया इस सीट पर बीजेपी को मात देने में सक्षम नजर आ रहे हैं.
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