पश्चिम कच्छ का प्रवेश द्वार माना जा रहा मांडवी गुजरात के यशगाथा का शिखर है. महाभारत के ऋषि मांडव्या के नाम पर मांडवी के नाम से जाना जाने वाला यह तटीय शहर अफ्रीका और ग्रीस जैसे यूरोपीय देशों तक जहाज निर्माण के लिए प्रसिद्ध था. हिंद की ओर जाने वाले जलमार्ग की तलाश में निकले पुर्तगाली साहसी वास्को डी गामा को कालीकट तक पहुंचाने वाले मछुआरा कानजी मालम मांडवी के थे. क्रांतिसूर्य श्यामजी कृष्ण वर्मा और समुद्री साहसिक कहानियों के लेखक गुणवंतराय आचार्य का यह गांव अपनी ऊबड़-खाबड़ तटरेखा और गहरी जड़ें वाली कच्छी संस्कृति के कारण पर्यटन का केंद्र माना जाता है. कच्छ लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले इस सीट को चुनाव आयोग ने 2 नंबर दिया है जिसमें मांडवी और मुंद्रा शहर-तालुका शामिल हैं. यहां पंजीकृत मतदाताओं की कुल संख्या 2,54,077 है.
मिजाज
साठ और सत्तर के दशक में जब गुजरात में कांग्रेस के खिलाफ विकल्प कमजोर थे, तब यहां एक अनोखा राजनीतिक मिजाज देखने को मिला था. दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता ने मांडवी में जनसंघ के उम्मीदवार के रूप में दक्षिणपंथी विचारधारा की नींव रखी, जिसने पहले चुनाव में ही निर्दलीय उम्मीदवार को विजेता बना दिया. 1975 से 1998 तक लंबे राजनीतिक करियर के बाद, सुरेश मेहता ने कुल पांच बार सीट का प्रतिनिधित्व किया. तब से मांडवी भाजपा का गढ़ रहा है. कांग्रेस यहां 42 साल में सिर्फ दो बार जीती है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 सुरेश मेहता भाजपा 14524
2002 छबील पटेल कांग्रेस 598
2007 धनजी सेंघानी भाजपा 4165
2012 ताराचंद छेडा भाजपा 8506
2017 वीरेंद्र सिंह जाडेजा भाजपा 9046
कास्ट फैब्रिक
दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी का गढ़ होने के बावजूद इस इलाके में मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा 21 फीसदी है. 13% दलित मतदाता भी निर्णायक हैं. 8% क्षत्रिय और 5% गढ़वी भी राजनीतिक रूप से एकजुट वोटबैंक हैं. यहां चुनाव जीतने के लिए जाति संतुलन बनाए रखना प्रमुख महत्व है. दलित मतदाता कांग्रेस के वोट बैंक हैं, लेकिन मांडवी में यह शायद ही लागू पड़ता है. पिछले चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों उम्मीदवार क्षत्रिय को मैदान में उतारा था तब मुस्लिम वोट के आधार पर कांग्रेस के दिग्गज नेता शक्ति सिंह गोहिल के जीतने की गणना पर दलित, गढ़वी और पाटीदार मतदाताओं ने पानी फेर दिया था.
समस्या
जहाजरानी का पुराना वैभव अब खंडहर बन चुका है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने जहाज निर्माण के स्वर्ण युग को वापस लाने का वादा किया है जो अभी तक कागज से नीचे नहीं आया है. मांडवी का पर्यटन के क्षेत्र में विकास हुआ है, लेकिन शहरी मतदाताओं को यातायात समस्या और गंदगी के रूप में इसकी कीमत चुकानी पड़ती है. मांडवी गांव की सड़कों को चौड़ा करने की मांग लगातार टलती जा रही है. चूंकि स्थानीय स्तर पर रोजगार के कोई बड़े अवसर नहीं हैं, इसलिए अधिकांश शिक्षित युवा कहीं और पलायन करने को मजबूर हैं.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
पिछले चुनाव में इस सीट से जीते वीरेंद्रसिंह जाडेजा की छवि दबंग नेता की है. इससे पहले रापर सीट से चुनाव हारने के बाद उन्हें इस सीट से मौका मिला था. लेकिन जीत के बावजूद इस बार दूसरा मौका मिलने की संभावना कम ही है. उनकी जगह पार्टी किसी प्रतिभाशाली महिला उम्मीदवार या किसी युवा चेहरे को मौका दे ऐसी संभावना जताई जा रही है.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस की ओर से इस सीट का फैसला शक्ति सिंह गोहिल करते हैं. जिग्नेश मेवानी कच्छ के दलित मतदाताओं को कांग्रेस की ओर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे देखकर ऐसा लगता है कि कांग्रेस मुस्लिम-दलित समीकरण को और ज्यादा मजबूत करने के लिए ऐसे उम्मीदवार को मौका दे सकती है.
तीसरा कारक
इस सीट पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कैलास गढ़वी बेहद निर्णायक कारक होंगे. कांग्रेस के प्रवक्ता के रूप में मशहूर कैलाश भाई एक चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं. कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल होने के बाद वह करीब एक साल से यहां कड़ी मेहनत कर रहे हैं. वे निश्चित रूप से गेम चेंजर साबित होंगे, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि वह किसे नुकसान पहुंचाएंगे.