चुनाव जीतने की सार्वजनिक शपथ लेने वाले आप प्रत्याशी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं
रिलायंस इंडस्ट्रीज, इंगरसोल रैंड, लुबी पंप्स, दिशमान फार्मा, पेप्सिको, अरविंद मिल्स, उमिया मिल्स, निर्माण टेक्सटाइल्स जैसी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कंपनियों का सामान्य पता यानी अहमदाबाद का नरोडा. अमराईवाड़ी और वटवा छोटे मध्यम स्तर के उद्योगों के केंद्र हैं जबकि नरोडा बड़े पैमाने पर निर्माण कंपनियों का हब माना जाता है. 1960 में गुजरात के विभाजन के बाद जब राज्य की औद्योगिक नीति तैयार की गई, तो मुंबई राजमार्ग पर वड़ोदरा से अंकलेश्वर तक की पट्टी को रासायनिक उद्योगों के विकास के लिए उपयुक्त माना गया था. इसी तरह, दिल्ली राजमार्ग पर नरोडा क्षेत्र को एक इंजीनियरिंग और विनिर्माण केंद्र के रूप में विकसित किया गया था. कालूपुर रेलवे स्टेशन, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के करीब और राजमार्गों के माध्यम से दिल्ली और मुंबई दोनों से कनेक्टिविटी क्षेत्र होने की वजह से नई सदी में एक आवासीय क्षेत्र के रूप में तेजी से विकसित हुआ है. इस क्षेत्र को सिंधी समुदाय के केंद्र के रूप में जाना जाता है क्योंकि देश के विभाजन के दौरान पाकिस्तान से आए सिंधी समुदाय के लोग नरोडा और सरदारनगर में बस गए थे. नरोडा विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत नगर पालिका के तीन वार्डों और आसपास के कुछ गांवों को मिलाकर कुल 2,64,314 मतदाता पंजीकृत हैं.
मिजाज
विभाजन की भयावहता को पत्यक्ष रूप से अनुभव कर चुके सिंधी समुदाय इस क्षेत्र में बहुसंख्यक हैं इसलिए भाजपा का यहां हमेशा से दबदबा रहा है. बीजेपी के संस्थापक नेता लालकृष्ण आडवाणी खुद को ‘नरोडा के लाल’ कहते थे. यहां बीजेपी प्रत्याशी भारी अंतर से जीतते रहे हैं. 2007 में डॉ. मायाबेन कोडनानी ने 1,80,000 वोटों की भारी बढ़त हासिल करके एक रिकॉर्ड बनाया था जिसे गुजरात विधानसभा में अब तक का सबसे बड़ा मार्जिन माना जाता है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 मायाबेन कोडनानी बीजेपी 74,854
2002 मायाबेन कोडनानी बीजेपी 1,11,095
2007 मायाबेन कोडनानी बीजेपी 1,80,442
2012 निर्मलाबेन वाधवानी बीजेपी 58,352
2017 बलराम थवानी बीजेपी 60,142
कास्ट फैब्रिक
यहां करीब 40,000 सिंधी निर्णायक माने जाते हैं. चूंकि बीजेपी के पास प्रतिबद्ध वोट बैंक है इसलिए बीजेपी ने यहां हमेशा सिंधी उम्मीदवार को तरजीह दी है. इसके बाद, लगभग 25,000 पाटीदार, 30,000 दलित और लगभग 32,000 प्रवासी भी यहां महत्वपूर्ण माने जाते हैं. कांग्रेस ने भाजपा के सिंधी वोटबैंक के खिलाफ पाटीदार, दलित और प्रवासी समीकरण बनाने की कई बार कोशिश की, लेकिन मतदाताओं ने उसे नकार दिया. यहां मुस्लिम समुदाय का अनुपात नगण्य है.
समस्या
पॉश इलाके के रूप में मणिनगर के साथ प्रतिस्पर्धा में होने के बावजूद, नरोडा क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के प्रश्न यथावत बने हुए हैं. मानसून में सड़कों, सोसायटियों में पानी भर जाना एक बारहमासी समस्या है. भले ही हाई कोर्ट को आवारा पशुओं के मामले में दखल देना पड़ा हो लेकिन इस समस्या का कोई हल नहीं निकल रहा है. हाईवे से अंदर की सोसायटियों की जर्जर सड़कों की शिकायतें भी लगातार आ रही हैं. स्थानीय लोगों की शिकायत है कि मायाबेन कोडनानी के बाद निर्वाचित हर जनप्रतिनिधि नियमित जनसंपर्क बनाए रखने में उदासीन रहा है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
भाजपा विधायक बलराम थवानी का टिकट कटना तय माना जा रहा था क्योंकि वह अपने गुस्सैल स्वभाव और तेजतर्रार व्यवहार के कारण पूरे कार्यकाल में लगातार विवादों में रहे थे. उनकी जगह बीजेपी ने डॉक्टर पायल कुकरानी को मौका दिया है. यह उम्मीद करना गलत नहीं है कि एक युवा महिला डॉक्टर के रूप में पायल बेन यहां थवानी के खिलाफ नाराजगी को आसानी से धो देंगी. नगर निगम पार्षद की बेटी होने के नाते पायल को राजनीतिक व्यवस्था और बूथ प्रबंधन में ज्यादा कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस ने यह सीट गठबंधन सहयोगी एनसीपी को आवंटित की है. एनसीपी ने पहले निकुल सिंह तोमर को टिकट दिया था. लेकिन नगरसेवक के रूप में इस्तीफा देने के लिए सहमत नहीं होने पर, तोमर ने उम्मीदवारी से इनकार कर दिया था. उसके बाद एनसीपी ने मेघराज डोडवानी को यहां से उतारा है. उम्मीदवारों के फेरबदल से पता चलता है कि इस सीट को जीतने के लिए एनसीपी का आत्मविश्वास कितना कमजोर है.
तीसरा कारक
एनसीपी के कमजोर उम्मीदवार के खिलाफ बीजेपी की असली लड़ाई आम आदमी पार्टी के ओम प्रकाश तिवारी से है. तिवारी इस क्षेत्र के पुराने खिलाड़ी हैं. पिछले चुनाव में उन्हें बतौर कांग्रेस उम्मीदवार पचास हजार से ज्यादा वोट मिल सकते थे. चुनाव जीतने की सार्वजनिक शपथ लेने वाले आप प्रत्याशी तिवारी की यहां के प्रवासियों के बीच अच्छी छाप है. आम आदमी पार्टी के लिए इस क्षेत्र में अच्छा माहौल है और तिवारी का जनसंपर्क भी व्यापक है. ऐसे में संभावना है कि तिवारी अपने वादे को पूरा करने के लिए पिछले चुनाव की तुलना में कड़ी टक्कर देंगे.
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