गुजरात बनने के बाद रोजगार के लिए सौराष्ट्र के गांवों से राजकोट की ओर पलायन बढ़ा और अगले चार दशकों में राजकोट ने विकास के मामले में वड़ोदरा की बराबरी कर ली. आज राजकोट को तेल इंजन निर्माण से लेकर ऑटो इंजीनियरिंग तक हर चीज के लिए एक राष्ट्रीय केंद्र माना जाता है. व्यापार में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है. दिन भर मेहनत करना, लेकिन दोपहर में तीन घंटे घर जाना और सो जाना राजकोट का मिजाज है जो आज भी बाकी गुजरात को हैरान कर देती है. रगड़ा जैसी चाय, चौबिसों घंटे मिलने वाला गरमा-गर्म गांठिया का स्वाद अब राजकोट ने अहमदाबाद तक पहुंचा दिया है. नए परिसीमन के बाद राजकोट-1 नामक विधानसभा सीट को दो सीटों में विभाजित कर दिया गया. उनमें से एक राजकोट पूर्व है. इस सीट के अंतर्गत नगर पालिका के 6 वार्डों के अलावा आसपास के कई गांव शामिल हैं. यहां करीब 2,60,000 मतदाता पंजीकृत हैं.
मिजाज
राजकोट जनसंघ के समय से और गुजरात राज्य के गठन से पहले हिंदू राजनीतिक विचारधारा का समर्थक रहा है. आरएसएस की पहली शाखा वडोदरा में शुरू हुई, उसके अगले साल राजकोट की शाखा शुरू की गई. राजकोट में केसरिया मिजाज बढ़ता ही जा रहा है. जनसंघ के समय चिमनभाई शुक्ल, अरविंद मनियार, प्रवीणभाई मनियार और संघ के डॉ. पीवी दोशी जैसे दिग्गजों के कारण शहरी क्षेत्र के बाद पूरे जिले में भाजपा का मजबूत वोट बैंक बनता जा रहा है. हालांकि नए परिसीमन के बाद हुए पहले ही चुनाव में बीजेपी की अंदरूनी गुटबाजी इतनी तेज हो गई कि कांग्रेस प्रत्याशी ने इसका फायदा उठाया और जीत हासिल की थी.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
2012 इंद्रनील राज्यगुरु कांग्रेस 4,272
2017 अरविंद रैयानी भाजपा 22,782
(जब से यह सीट परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई है, तब से अब तक यहां दो चुनाव हो चुके हैं)
कास्ट फैब्रिक
राजकोट पूर्व की सीट को पाटीदारों का अभेद्य किला माना जाता है. यहां लगभग 25% पाटीदार हैं जिनमें से 20% लेउवा हैं. इसके अलावा, कोली, दलितों और मुसलमानों में से प्रत्येक के लगभग 15 से 17% होने का अनुमान है. जब प्रत्येक पार्टी का उम्मीदवार पाटीदार होता है, तो अन्य समुदायों के वोट निर्णायक हो जाते हैं. हर जाति समुदाय ज्यादातर भाजपा समर्थक होने की प्रवृत्ति दिखाता रहा है.
समस्या
शहरी क्षेत्र होने के कारण यहां ट्रैफिक की समस्या सबसे पहले चर्चा का विषय है. स्थानीय लोग ट्रैफिक आइलैंड्स और सिग्नल की स्थिति के बारे में शिकायत करते हैं. पीने के पानी की समस्या सबसे ज्यादा राजकोट में महसूस की जा रही है. आईटी पार्क और अहमदाबाद की गिफ्ट सिटी की तर्ज पर गारमेंट पार्क विकसित करने की योजना पर अमल नहीं हो सका. राजकोट के इंजीनियरिंग उद्योग और स्पेयर पार्ट्स निर्माताओं को लाभ पहुंचाने के लिए राज्य सरकार द्वारा हर साल एक ऑटो एक्सपो आयोजित करने की बात भी आगे नहीं बढ़ी है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
इस सीट से पहली बार जीत हासिल करने वाले अरविंद रैयानी को भूपेंद्र पटेल के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था, लेकिन रैयानी का टिकट उनकी विवादित छवि और पहले कार्यकाल के बावजूद दबंग और महत्वाकांक्षी स्वभाव को उजागर करने के कारण कट गया है. उनकी जगह बीजेपी ने पूर्व मेयर और युवा के तौर पर साफ छवि वाले उदय कानगड को मैदान में उतारा है. हालांकि स्थानीय स्तर पर पूर्व विधायक गोविंद पटेल, सांसद मोकरिया और रूपाणी गुट के बीच टकराव का असर कानगड पर भी पड़ सकता है.
प्रतियोगी कौन?
इंद्रनील राज्यगुरु को कांग्रेस ने एक और मौका दिया है. आम आदमी पार्टी के साथ कुछ समय बिताने के बाद इंद्रनील की घर वापसी हो गई है. 2012 के चुनावों में भाजपा की आंतरिक कलह का फायदा उठाने में सफल रहे थे. इस बार भी वे भाजपा में गुटबाजी से फायदा होने की उम्मीद जता रहे हैं.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी ने यहां राहुल भुवा को चुना है लेकिन शहर में कहीं भी आम आदमी पार्टी की तस्वीर नहीं दिख रही है. कांग्रेस और भाजपा के बीच होने वाली सीधी टक्कर में भाजपा को सिर्फ मार्जिन की चिंता सता रही है.
#बैठकपुराण जामनगर (उत्तर): हिंदूवाद+मोदी का करिश्मा+रिवाबा=भारी मार्जिन