मुगल बादशाह जहांगीर और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग में क्या समानता है, ऐसा सवाल किया जाए तो विभिन्न तर्कों के झूले को झूलने के बजाय संखेड़ा के झूले का नाम बता दिजिएगा. एक और दिलचस्प संयोग यह है कि दोनों को झूला झूलाने में गुजराती का ही हाथ था. अहमदाबाद के श्रेष्ठ शांतिदास जावेरी ने सम्राट जहांगीर को संखेड़ा का झूला भेजा था और प्रधानमंत्री मोदी ने शी जिनपिंग झूला झुलाया था. वजन में हल्का है लेकिन स्थायित्व में बहुत मजबूत लकड़ी पर नाजुक कलाकृति करके उस पर वनस्पति रंगों और लाख के मिश्रण से बनने वाली शानदार कलाकारी करने वाला यह क्षेत्र आदिवासियों के कौशल को देश और विदेश में पहुंचा चुका है. जिसे सत्रहवीं शताब्दी के अंग्रेज अधिकारी जेम्स फोर्ब्स ने कुछ फर्नीचर ब्रिटेन ले गया था. वहां के एक अखबार में एक लेख भी लिखा था. उसके बाद दुनिया ने भी संखेड़ा के इस शिल्प कौशल की सराहना की थी. छोटाउदयपुर तालुका में स्थित इस सीट की रैंक 139 है. अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट के तहत संखेड़ा, बोडेली, नसवाड़ी शहर-तालुका के कुल 2,72,855 मतदाता पंजीकृत हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि फर्नीचर शिल्प कौशल और कला के लिए विश्व प्रसिद्ध यह क्षेत्र पिछड़ेपन की श्रेणी में आता है.
मिजाज
गुजरात राज्य की शुरुआत के बाद पचरंगी मिजाज वाली इस सीट पर चिमनभाई पटेल की क्षेत्रीय पार्टी किमलोप और कुछ समय से चर्चा में रही और फिर खो गई उसके बाद जनता दल सहित कांग्रेस, भाजपा सबको एक समान मौका देती आ रही है. इस क्षेत्र के मतदाताओं का झुकाव उस पार्टी के उम्मीदवार की ओर होता है जो सत्ता के करीब होता है. जब सामान्य वर्ग की सीट थी तब गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल भी यहां से जीते और कैबिनेट मंत्री बने थे. पिछले पंद्रह सालों से यहां बीजेपी उम्मीदवारों को सफलता मिल रही है. संखेड़ा, बोडेली और नसवाड़ी तीनों तालुका पंचायतों में भी भाजपा का दबदबा है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 बाबरभाई तड़वी कांग्रेस 3973
2002 कांतिभाई तड़वी भाजपा 35619
2007 अभयसिंह तड़वी भाजपा 9564
2012 धीरूभाई भील कांग्रेस 1452
2017 अभयसिंह तड़वी भाजपा 12849
कास्ट फैब्रिक
लगभग 65% आदिवासी मतदाताओं के साथ इस निर्वाचन क्षेत्र में तड़वी, भील उप-जातियां प्रमुख हैं. इसके अलावा, वसावा, निनामा और गामित उपजातियां भी हैं. प्रत्येक समुदाय हालांकि आदिवासी हैं लेकिन अलग प्रकार का समीकरण होता है. इस निर्वाचन क्षेत्र की लगभग 92% आबादी गांवों और छोटे कस्बा में रहती है. यहां शहरी जीवन की चमक-धमक दूर से भी देखने को नहीं मिलती. बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियां आदिवासी उप-जाति समीकरणों के अनुसार उम्मीदवारों का चयन करती हैं.
समस्या
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यहां की जमीन का मालिक आदिवासी किसान सौराष्ट्र में खेतिहर मजदूर या भागीदार के रूप में काम करता है. यहां सिंचाई की व्यवस्था नहीं होने के कारण कृषि योग्य भूमि बंजर हो जाती है. औद्योगिक विकास की तमाम चर्चाओं के बावजूद यहां अभी तक जीआईडीसी की स्थापना नहीं हुई है. लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देने और भूमि आवंटन पर विचार करने की नीति सरकारी गोष्ठियों और एसी हालों से बाहर नहीं निकल रही हैं. पीने योग्य पानी की कमी, स्वास्थ्य के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाएं भी इस निर्वाचन क्षेत्र के दुर्भाग्य हैं.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
भाजपा विधायक अभय सिंह तड़वी को स्थानीय स्तर पर प्रभावशाली माना जाता है, लेकिन कहा जाता है कि कई विवादों में आने के बाद स्थानीय स्तर पर उनका संपर्क टूट गया है. भले ही भाजपा सरकार में है, लेकिन उनके प्रदर्शन की व्यापक आलोचना हो रही है क्योंकि चुनाव के दौरान किए गए अधिकांश वादे पूरे नहीं किए गए हैं. कोरोना के मुश्किल समय में उनकी गैरमौजूदगी पर भी खूब बहस हो रही है. हालांकि, नए चेहरे के अभाव में इस बात की प्रबल संभावना है कि भाजपा अभय सिंह को ही दोहराएगी.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस के पुराने जोगी धीरूभाई भील ने फिर से चुनाव लड़ने का बिगुल फूंक दिया है. इस बार कांग्रेस के लिए मौका है क्योंकि भाजपा शासन के तहत अधूरे कार्यों की सूची बहुत बड़ी है, लेकिन तालुका पंचायत में कांग्रेस को मिलने वाला झटका को देखकर उसके उम्मीदवार के लिए यहां से जीत हासिल करना किसी पहाड़ पर गांव बसाने से ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.
तीसरा कारक
यहां आम आदमी पार्टी की मौजूदगी न के बराबर है. अगर उसके पास उम्मीदवार भी है तो भी तय है कि मुख्य लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही लड़ी जाएगी.
#बैठकपुराण ठासरा: भाजपा और कांग्रेस दोनों एक दूसरे की पार्टी से आने वाले परमार पर निर्भर