रामायण, महाभारत सहित कई धार्मिक और पौराणिक टीवी श्रृंखलाओं का निर्माण स्थल यानी उमरगाम गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित है. आदिवासी बहुल आबादी वाली यह विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. यह क्षेत्र समुद्र तट और उसके आसपास अपार प्राकृतिक सुंदरता के साथ एक पर्यटन स्थल के रूप में भी जाना जाता है. गुजरात और महाराष्ट्र के बीच की सीमा होने के कारण यहां व्यापक औद्योगिक विकास की भी संभावना है. विशेष रूप से गुजरात के विभाजन के बाद के शुरुआती तीन दशकों के दौरान जीआईडीसी सहित योजनाओं के कार्यान्वयन के बाद से, यह क्षेत्र अपनी दूरदर्शिता के बावजूद महत्वपूर्ण प्रगति करने में सक्षम रहा है. उमरगाम को भारत के पहले नैनो टेक्नोलॉजी प्लांट के लिए भी जाना जाता है.
मिजाज
स्थानीय नेता छोटूभाई पटेल के जीवनकाल में यह सीट कांग्रेस की ओर झुकाव रखती थी. लेकिन अब भाजपा नेता रमन पाटकर का दबदबा है. 2002 में एक अपवाद को छोड़ दें तो पाटकर ने यहां पांच बार जीत हासिल कर अपना निजी और बीजेपी का गढ़ बना दिया है. यहां बीजेपी यही पाटकर का समीकरण स्थाई हो चुका है. स्थानीय आदिवासी समुदाय एक पार्टी के बजाय किसी एक नेता के प्रभाव में मतदान करने के आदी हैं. एक समय जब छोटूभाई प्रभावशाली थे, तब कांग्रेस को वोट मिल रहा था.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 रमन पाटकर भाजपा 4385
2002 शंकरभाई वारली कांग्रेस 73
2007 रमन पाटकर भाजपा 51,611
2012 रमन पाटकर भाजपा 28,299
2017 रमन पाटकर भाजपा 41,690
कास्ट फैब्रिक
इस सीट पर 40% अनुसूचित जनजाति और 8% अनुसूचित जाति की आबादी के साथ, आदिवासी समाज की उपजातियों के आंतरिक समीकरण बहुत महत्वपूर्ण हैं. वारली समुदाय को उपजातियों में सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली माना जाता है. इसके अलावा हलपति, माछी, धोड़ी और मुस्लिम समुदाय भी अच्छे अनुपात में हैं.
समस्या
पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होने की तमाम संभावनाओं के बावजूद यहां सहायक विकास का अभाव है. होटल, रिसॉर्ट को बीस साल तक टेक्स में छूट का प्रावधान अभी तक लागू नहीं किया गया है. फिल्म की शूटिंग के लिए स्टूडियो को दी जाने वाली रियायतें भी पूरी कर ली गई हैं. इसलिए कभी फलते-फूलते स्टूडियो अब धीमे पड़ गए हैं. जैसे-जैसे कृषि का क्षरण होता गया आदिवासी समुदाय ने ज्यादातर रोजगार के लिए जीआईडीसी में श्रम का सहारा लिया है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
यहां से पांच बार विधायक रहे रमन पाटकर की यहां भाजपा संगठन पर अच्छी पकड़ है. हालांकि इस बात की पूरी संभावना है कि उनकी उम्र के कारण उन्हें इस बार टिकट नहीं मिलेगा, लेकिन स्थानीय स्तर पर चर्चा है कि उनका चयन अंत में निर्णायक होगा. खुद पाटकर और उनकी बहू ने निरीक्षकों के समक्ष दावेदारी पेश की है. पूर्व विधायक शंकर वारली भी अहम दावेदार माने जा रहे हैं. वारली समुदाय पाटकर के अधिनायकवादी शासन का कड़ा विरोध किया है, इसलिए इस बार पाटकर या उनके समर्थित उम्मीदवार के लिए यहां से जीत हासिल करना एक कठिन चढ़ाई साबित होने वाली है.
प्रतियोगी कौन?
कांग्रेस इस बार लंबे समय से खोई हुई इस सीट पर फिर से कब्जा करने के लिए हिमांशु वारली को एक युवा नेता के रूप में मैदान में उतार सकती है. कांग्रेस इस सीट को वारली समुदाय के अलावा मुस्लिम समुदाय के वोट बैंक के आधार पर हथियाने की कोशिश कर रही है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी यहां माउथ पब्लिसिटी से अच्छी खासी चर्चा है लेकिन स्थानीय स्तर पर उसका कोई संगठन नहीं है. इसलिए अगर आम आदमी पार्टी को यहां से एक प्रतिभाशाली और लोकप्रिय उम्मीदवार मिल भी जाता है, तो आप चुनावी परिणाम पर कोई खास असर नहीं छोड़ पाएगी.
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