चुनाव आयोग के अनुसार, अमरेली विधानसभा सीट संख्या 94 के साथ गुजरात राज्य के गठन के बाद से अस्तित्व में है. अमरेली शहर के मूल नाम अमरवेली का सबसे पहला उल्लेख इस्वी सन पांचवीं सदी में रचित मनातां पश्यंत मीमांसा नामक ग्रंथ में मिलता है, वडी और ठेबी दो नदियों और कामनाथ और त्र्यंबकेश्वर इन दो महादेव मंदिरों के बीच स्थित, शहर को लंबे समय तक उथल-पुथल के बाद गायकवाडी शासन के दौरान स्थिर किया गया था. गुजरात विभाजन के समय प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. जिवराज मेहता ने अपने गृहनगर को एक जिले का दर्जा देने पर जोर दिया जिसकी वजह से अमरेली जिला का गठन हुआ. गुजराती भाषा के महाकवि कवि रमेश पारेख के गृहनगर के रूप में साहित्य प्रेमियों के बीच प्रसिद्ध अमरेली साहसी और नाविकों का केंद्र माना जाता था. मुंबई में कदम रखने वाले पहले गुजराती अमरेली के रूपजी धनजी सांघवी थे. ऐसा चंद्रकांत बख्शी ने ‘महाजाति गुजराती’ में लिखा है. हालांकि अब अमरेली में कपोल की आबादी बहुत कम रह गई है.
मिजाज
अमरेली विधानसभा क्षेत्र में अमरेली शहर और तालुका के अलावा कुकावाव और वडिया के कई गांव शामिल हैं. लोकसभा में हमेशा बीजेपी का साथ देने वाली इस सीट ने विधानसभा चुनाव में युवाओं का साथ दिया है और यहां तक कि दिग्गजों को भी हार का स्वाद चखना पड़ा है. दिग्गज किसान नेता द्वारका दास पटेल (दकुभाई) का दबदबा उस वक्त के युवा नेता दिलीप संघानी, परशोत्तम रूपाला ने तोड़ दिया था. बाद में युवा परेश धनानी से हारने की बारी दोनों दिग्गज नेताओं की थी. यही अमरेली विधानसभा सीट की खासियत है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 परशोत्तम रूपाला बीजेपी 8081
2002 परेश धनानी कांग्रेस 16,314
2007 दिलीप संघानी भाजपा 4189
2012 परेश धनानी कांग्रेस 29,848
2017 परेश धनानी कांग्रेस 12,029
कास्ट फैब्रिक
बड़ी संख्या में पाटीदार मतदाताओं वाली इस सीट पर ब्राह्मण, काठी क्षत्रिय, कोली, दलित और मुस्लिम मतदाताओं की भी अच्छी खासी संख्या है. लेउवा पाटीदार जाति का समीकरण फिट बैठने पर यहां अन्य समुदाय का वोट गौण हो जाता है.1962 में डॉ. जीवराज मेहता इस सीट से जीतकर राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने थे, उनको छोड़कर इस सीट से हमेशा पाटीदार उम्मीदवार ही चुने गए हैं. अमरेली ही नहीं, राजुला क्षेत्र को छोड़कर पूरे जिले में पाटीदार मतदाताओं का दबदबा है.
समस्या
चूंकि पूरा क्षेत्र कृषि पर आधारित है, इसलिए यहां फसल बीमा योजना को लेकर सरकार के खिलाफ काफी आक्रोश है. तौकते चक्रवात से हुए नुकसान के मुआवजे की भी शिकायतें व्यापक हैं. इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में यह इलाका अभी भी पिछड़ा हुआ है. जिला मुख्यालय होते हुए भी अमरेली को उन शहरों में सबसे आगे माना जाता है जो पूरे गुजरात में पीछे छूट गया है. पिछले चुनाव में पाटीदार आंदोलन के अलावा ग्रामीण आक्रोश मुख्य कारक था. इस बार पाटीदार आंदोलन नहीं है. इसके अलावा भाजपा ने ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं के समाधान के लिए सहयोग सम्मेलनों पर जोर दिया है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
कुल तीन बार और लगातार दो बार इस सीट से जीत हासिल करने वाले कांग्रेस के परेश धनानी ने 27 साल की उम्र में पहला चुनाव जीता था. वह ज्वाइंट किलर यानी एक विशाल शिकारी का अपना दबदबा कायम रखा है. दिलीप संघानी, परशोत्तम रूपाला और बावकुभाई उंधाड जैसे दिग्गजों को भारी अंतर से हराया है. स्थानीय स्तर पर उनका जनसंपर्क बहुत प्रभावशाली है. उन्हें जातिगत समीकरण बनाने में भी महारत हासिल है. इस बार बीजेपी हर बात का ध्यान रखते हुए उम्मीदवार का चयन नहीं करेगी तो परेश धनानी के रथ को रोकना मुश्किल होगा.
प्रतियोगी कौन?
दिलीप संघानी के बेटे मनीष संघानी इस बार बीजेपी में इस सीट के मुख्य दावेदार हैं. हालांकि भाजपा आलाकमान वंशवाद की नीति का विरोध कर रहा है, अगर दिलीपभाई अपने बेटे को टिकट दिलाने में विफल रहते हैं, तो जिला भाजपा अध्यक्ष कौशिक वेकारिया को मुख्य दावेदार माना जाता है. कौशिकभाई एक युवा के रूप में तेजी से बढ़े और जिले की राजनीति में खुद को स्थापित किया है. किसी जमाने में परेश धनानी अपनी युवा और गतिशील छवि से दिग्गजों को मात देने में सक्षम थे, इस बार कौशिक उसी छवि को लेकर आगे बढ़ रहे हैं.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी यहां संगठन बनाने के लिए संघर्ष करती दिख रही है. उसके लिए स्थानीय जाति समीकरण को संतुलित करने के लिए एक चेहरा ढूंढना भी मुश्किल है. इसे देखते हुए इस बात की प्रबल संभावना है कि कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होगा.