केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया ने आम आदमी पार्टी का उदाहरण देकर भाजपा कार्यकर्ताओं को सोशल मीडिया पर सक्रिय होने का आह्वान करने वाला वीडियो वायरल होने के बाद आम आदमी पार्टी का उत्साह दोगुना हो गया है. शुरुआती दौर में सोशल मीडिया का महत्व अब स्पष्ट होता जा रहा है और जन लोकपाल आंदोलन के बाद से आप के थिंक टैंक का इस पर अच्छा नियंत्रण है. लेकिन असली परीक्षा अब होगी, जब चुनाव की घोषणा हो जाएगी और उम्मीदवारों के नाम तय हो जाएगा. उसके बाद की लड़ाई यह होगी कि कैसे वोटरों को मतदान केंद्र तक लाया जाए. आम आदमी पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने तीन शीर्ष नेताओं को विधानसभा में भेजना है. प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया, राष्ट्रीय सचिव इसुदान गढ़वी और इंद्रनील राज्यगुरु कौन सी सीट से चुनाव लड़ेंगे यह सवाल बेहद पेचीदा है.
गोपाल इटालिया
प्रदेश अध्यक्ष इटालिया भावनगर जिले के उमराला तालुका के टिम्बी गांव के मूल निवासी हैं. उनका परिवार यहीं रहता है और यहां उनकी जमीन भी है. लेकिन गोपाल इटालिया लंबे समय से सूरत में बसे हुए हैं. पैतृक गांव उमराला की विधानसभा सीट को नए परिसीमन के बाद पहले ही गढ़डा और वल्लभीपुर में मिला दिया गया है. साथ ही यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. ऐसे में गोपाल का यहां से चुनाव लड़ने का सवाल ही नहीं उठता. गोपाल इटालिया के लिए अनुकूल मानी जाने वाली तीन सीटें सूरत शहर की हैं.
वराछा
यहां के करीब दो लाख मतदाताओं में करीब डेढ़ लाख पाटीदार हैं जो सौराष्ट्र के मूल निवासी हैं. गोपाल इटालिया खुद भी यहां के स्थानीय मतदाता हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में पाटीदार आरक्षण आंदोलन की तीव्रता के बावजूद इस सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी, लेकिन उसके बाद होने वाले सूरत नगर निगम के चुनाव में नवागंतुक आम आदमी पार्टी के कुल 27 उम्मीदवार चुने गए थे, जिनमें से 20 वराछा विधानसभा सीट के अंतर्गत आते हैं. यह आप के प्रदेश अध्यक्ष को यहां चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित भी कर सकता है. हालांकि, दिग्गज व्यवसायी धीरू गजेरा कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में हारकर पहले ही भाजपा में लौट चुके हैं और इस बार भाजपा मौजूदा विधायक कुमार कनानी की जगह उन्हें टिकट मिलने की संभावना है. इन परिस्थितियों में इटालिया प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अन्य सीटों पर बैठकें आयोजित करने के बजाय अपनी सीट तक ही सीमित हो जाएं ऐसा भी हो सकता है.
करंज
वराछा के अलावा यह सीट इटालिया की दूसरी पसंद बन सकती है. 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई सीट पर पाटीदारों की संख्या करीब 60 फीसदी है. अगर इटालिया इस सीट से अपनी उम्मीदवारी दाखिल करते हैं, तो आप वराछा सीट के अलावा एक और सीट के लिए आशान्वित हो सकती है. लेकिन इटालिया का इस सीट से चुनाव जीतना आसान नहीं होगा. भाजपा के दिग्गज नेता जनक बगदानावाला यहां फिर से चुनाव लड़ सकते हैं और स्थानीय स्तर पर उनकी सक्रियता को देखकर इटालिया का पसीना छूट सकता है.
कतारगाम
करीब 85-90 हजार पाटीदारों और 60 हजार प्रजापति समाज की आबादी वाली यह सीट इटालिया को भी अपनी किस्मत आजमाने के लिए लुभा सकती है. स्थानीय स्तर पर अनुमान लगाया जा रहा है कि बोटाद, ढसा, गढ़डा के प्रजापति समाज गोपाल इटालिया को अपना वोट दे सकते हैं. हालांकि, यदि भाजपा वर्तमान विधायक नानू वनानी को पाटीदार उम्मीदवार के रूप में खड़ा करती है और यदि कांग्रेस आप के प्रदेश अध्यक्ष के समर्थन के बिना एक मजबूत प्रजापति उम्मीदवार को मैदान में उतारती है, तो इटालिया की राह यहां से भी आसान नहीं होगी. ऐसे में इटालिया यहां कांग्रेस के समर्थन के बिना मैदान में नहीं उतरेंगे.
इसुदान गढ़वी
पत्रकार, न्यूज एंकर से नेता बने इसुदान गढ़वी के लिए जीतने योग्य सीट ढूंढना समाचारों के ढेर से स्कूप खोजने से कहीं अधिक कठिन है. वह जामनगर जिले के खंभालिया से ताल्लुक रखते हैं. वह जिस सीट से आते हैं वहां आहिर मतदाताओं का दबदबा है. कांग्रेस के दिग्गज नेता विक्रम माडम की इस सीट पर इसुदान के लड़ने की संभावना न के बराबर मानी जा रही है.
जाति समीकरण के अनुसार कच्छ की मांडवी सीट उनके लिए उपयुक्त मानी जाती है. उस सीट पर गढ़वी समुदाय की संख्या 5 से 7 फीसदी है. लेकिन इस सीट से कांग्रेस से आए कैलास गढ़वी की उम्मीदवारी का ऐलान हो चुका है.
वह बापूनगर या निकोल सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. यहां उन्हें मौजूदा विधायक हिम्मत सिंह पटेल के अलावा भाजपा के संभावित दावेदार और पूर्व पुलिस अधिकारी तरुण बारोट या फिर दिनेश शर्मा का सामना करना पड़ेगा. निकोल सीट पर पाटीदार, ठाकोर, मुस्लिम और प्रवासी वोटबैंक पर इसुदान कितना भरोसा कर पाते हैं. यह तो समय बताएगा.
इसके अलावा कच्छ की रापर और अब्डासा सीटें भी उनके लिए आशाजनक मानी जा रही है. इन दोनों सीटों पर उन्हें गढ़वी के अलावा क्षत्रिय समुदाय का समर्थन मिल सकता है. जाति समीकरण की दृष्टि से ये दोनों सीट इसुदान के लिए अधिक उपयुक्त मानी जा रही है.
इंद्रनील राज्यगुरु
कांग्रेस से आम आदमी पार्टी में आए इंद्रनील के दो प्लस प्वाइंट हैं. एक यह है कि वह एक अमीर ब्राह्मण है और दूसरा वह किसी से डरते नहीं है और दबंग तरीके के नेता है. ‘मैं अपनी ब्राह्मण चोटली छोड़ दूंगा तो…’ तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के सामने ऐसी भी शेखी बघार सकते हैं कि ‘हां मेरे पास शराब का परमिट है’ जैसा सार्वजनिक स्वीकारोक्ति भी कर सकते हैं.
पहले राजकोट पूर्व सीट से चुने जाने के बाद, उन्होंने भाजपा के गढ़ राजकोट पश्चिम सीट से रूपाणी के खिलाफ चुनाव लड़े थे और लगभग 55,000 मतों से हार गए थे. इस सीट पर ब्राह्मण वोटर काफी बड़ी संख्या में हैं. लेकिन यह सीट बीजेपी का गढ़ है इसलिए यहां से इंद्रनील की जीत आसान नहीं है.
अगर वे पिछली सीट पर वापस जाते हैं तो भी उन्हें अब कोई खास फायदा नहीं होगा क्योंकि जब वह जीते थे तब उनके खिलाफ बीजेपी के कश्यप शुक्ला थे. पाटिदार मतदाताओं की बहुमत वाली इस सीट से अब गोविंद पटेल विधायक हैं, और उनका टिकट पक्का माना जा रहा है. पाटीदार उम्मीदवार की मौजूदगी में इस सीट को जीतना न केवल इंद्रनील बल्कि किसी अन्य जाति के किसी भी उम्मीदवार के लिए आसमान से तारे तोड़ना जितना मुश्किल होगा.
इसके अलावा इंद्रनील के लिए कोई गारंटी वाली सीट नहीं है. अन्य जिलों में उनकी इतनी व्यापक पहचान भी नहीं है. इसलिए हर जगह वे स्काईलैब या पैराशूट उम्मीदवार माने जाने से भी डरते हैं.
कुल मिलाकर यह संभावना है कि केजरीवाल के तीन इक्के में से शायद एक विधानसभा में दिखाई दे सकता है बाकी को टीवी डिबेट में ही सुना जाएगा.
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