बॉडी बिल्डर जयवीरराज समाज के हर वर्ग में काफी लोकप्रिय हैं और राजनीति में आने के इच्छुक हैं
आम आदमी पार्टी के संपर्क की खबर फैलते ही पाटिल नीलमबाग पैलेस पहुंचे
रजवाड़ा को खत्म हुए साढ़े सात दशक हो गए हैं, लेकिन शाही परिवार का दबदबा और जनता के दिमाग पर उसका असर आज भी बरकरार है. आजादी के बाद, कुछ राजघरानों ने सक्रिय राजनीति में छलांग लगा दी और यहां तक कि लोगों के समर्थन से विधानसभा, लोकसभा तक पहुंच गए है. जिसमें राजकोट के मनोहरसिंह जाडेजा से लेकर वडोदरा की शुभांगिनी गायकवाड़ तक के नाम लिए जा सकते हैं. अब इसमें भावनगर राज्य के राजकुमार जयवीरराज सिंह गोहिल का नाम भी शामिल हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा.
युवाओं के बीच पसंदीदा हैं बॉडी बिल्डर युवराज
भावनगर के महाराजा कृष्णकुमारसिंहजी, जिन्होंने देश की एकता के लिए अपना राज्य सबसे पहले समर्पण किया, उनके प्रति लोगों का सम्मान स्वाभाविक है. कृष्णकुमारसिंहजी के दूसरे पुत्र शिवभद्रसिंहजी तलाजा सीट से दो बार विधायक बने थे. इसके अलावा भावनगर का शाही परिवार सक्रिय राजनीति से दूर रहता है. वर्तमान महाराजा विजयराज सिंह भी सार्वजनिक जीवन से काफी हद तक दूर रहने के आदी हैं. लेकिन उनके बेटे जयवीरराज सिंह न केवल भावनगर में बल्कि पूरे राज्य के युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं. बॉडी बिल्डिंग के शौक़ीन जयवीरराज का कद बड़ा और मस्कुलर बॉडी है और सोशल मीडिया पर उनकी बहुत बड़ी फैन फॉलोइंग है. जयवीरराज के वीडियो को YouTube और अन्य प्लेटफार्मों पर लाखों की संख्या में लोग देखते हैं. मृदु भाषी और सरल स्वभाव के युवराज न केवल भावनगर में बल्कि सौराष्ट्र के पूरे क्षत्रिय समाज में बहुत सम्मानित स्थान रखते हैं. यहां तक कि जब कुलदेवी खोडियार माता के दर्शन को वह जब जाते हैं तब लोग अनुशासित होकर लाइन में खड़े होकर उनको सम्मान देते हैं.
गोहिलवाड़ क्षत्रिय समाज की मांग
जिले में करीब ढाई लाख की आबादी वाला क्षत्रिय समुदाय राजनीति में शामिल रहा है. एक दौर था जब क्षत्रिय उम्मीदवार भावनगर जिले की दस विधानसभा सीटों में से आधी जीत रहे थे, जिसे गोहिलवाड़ के नाम से जाना जाता था. राजेंद्रसिंह राणा जैसे क्षत्रिय ने भावनगर लोकसभा सीट का लगातार पांच बार प्रतिनिधित्व किया है. अब स्थिति ऐसी है कि क्षत्रियों को लगने लगा है कि जिले की राजनीति में उनकी जगह खत्म हो गई है. लोकसभा सीटों पर क्षत्रियों को टिकट नहीं मिलता. विधानसभा में, कांग्रेस क्षत्रिय उम्मीदवारों को टिकट देती है, लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार नहीं जीतते हैं और यह धारणा है कि भाजपा क्षत्रियों के साथ कृपालु व्यवहार कर रही है. भाजपा क्षत्रिय नेताओं को संगठन में सम्मान का स्थान देती है लेकिन विधानसभा टिकटों के आवंटन में क्षत्रियों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलने की भावना एक पखवाड़े पहले गोहिलवाड़ क्षत्रिय समाज की बैठक में व्यक्त की गई थी. इस बार मांग है कि प्रत्येक राजनीतिक दल क्षत्रियों को तीन-तीन टिकट आवंटित करें. इस बैठक में सभी राजनीतिक दलों के नेता मौजूद रहे थे.
कारडिया राजपूत समाज भी नाराज
भावनगर जिले में अच्छी खासी आबादी वाले कारडिया राजपूत समुदाय भी फिलहाल बीजेपी से नाराज है. कुछ साल पहले मौजूदा कैबिनेट मंत्री और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष जीतू वाघानी के खिलाफ बुधेल गांव के दानसिंह मोरी ने आंख लाल किया था. उस समय समस्त कारडिया समाज ने दानसिंह का समर्थन किया था. बमुश्किल सुलह होने के बाद अब बीजेपी और कारडिया समाज के बीच एक बार फिर कड़वाहट आ गई है. इसमें भाजपा के जिलाध्यक्ष मुकेश लंगालिया की अहम भूमिका रही है. पार्टी कार्यक्रम के दौरान उन्होंने एक विवादित सवाल पूछा, ‘बीजेपी बड़ी है या फिर कारडिया समाज?’ इस ऑडियो क्लिप के वायरल होने के बाद कारडिया समाज ने नाराजगी जताते हुए लंगालिया के इस्तीफे की मांग की थी. अब जिलाध्यक्ष ने माफी मांगकर और इस्तीफा देकर मामले को सुलझाने की कोशिश की है, लेकिन भाजपा आलाकमान ने इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है. अब अगर टिकट आवंटन में क्षत्रिय समुदाय की अनदेखी की गई तो यह विवाद फिर से तूल पकड़ सकता है.
आप के बाद अब बीजेपी नीलमबाग में नतमस्तक
भावनगर जिले में पैर जमाने की कोशिश कर रही नवागंतुक आम आदमी पार्टी राजकुमार जयवीरराज को एक करिश्माई चेहरे के रूप में लुभा रही है. बताया जाता है कि दो हफ्ते पहले केजरीवाल के भावनगर दौरे के दौरान आम आदमी पार्टी के एक शीर्ष नेता ने भावनगर राजघराना के आधिकारिक आवास नीलमबाग पैलेस में एक उच्च स्तरीय बैठक की थी. इस मुलाकात की खबर फैलने के बाद बीजेपी का पेट दर्द होना स्वाभाविक है. अगर जयवीरराज आप के उम्मीदवार बन जाते हैं तो पूरे जिला की राजनीतिक हवा बदल जाएगी और फिर यहां कोई भी फैक्टर बीजेपी को बढ़त नहीं दिला सकेगी. इसलिए केजरीवाल के दौरे के तुरंत बाद भावनगर पहुंचे सीआर पाटिल भी नीलमबाग पैलेस गए और जयवीरराज से मुलाकात की थी. बैठक को शुभेच्छा मुलाकात करार दिया गया था, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि प्रिंस को आम आदमी पार्टी की ओर न झुकने और सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने पर भाजपा उम्मीदवार बनने का आमंत्रण दिया गया है. उसके बाद से जयवीरराज सिंह की गतिविधि रहस्यमय तरीके से कम हो गई है.
भाजपा क्षत्रिय समुदाय या फिर वाघानी किस पर लगाएगी दांव
भावनगर पश्चिम सीट पर क्षत्रिय समुदाय के मतदाताओं की संख्या करीब 40 हजार है. इस सीट से फिलहाल जीतू वाघानी चुनाव लड़ रहे हैं. अगर बीजेपी यहां किसी क्षत्रिय उम्मीदवार को मौका देती है तो वाघानी को सीट बदलनी होगी. गरियाधर की पाटीदार बहुल सीट उनके लिए उपयुक्त मानी जाती है. इस सीट के मौजूदा विधायक केशुभाई नाकरानी लगातार सात बार जीतकर उम्र के कारण सेवानिवृत्त होने वाले हैं. लेकिन वाघानी किसी भी सूरत में भावनगर पश्चिम सीट छोड़ने को तैयार नहीं हैं. ऐसे में वाघानी या क्षत्रिय समुदाय को खुश करने का सवाल बीजेपी के थिंक टैंक के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है. अगर जयवीरराज भावनगर की जगह पालिताना के लिए राजी हो जाएं तो बीजेपी राहत की सांस लेगी. नहीं तो जिस तरह अमरेली और गिर सोमनाथ 2017 में बीजेपी के लिए सिरदर्द बने थे, उसी तरह भावनगर जिला इस बार भी चुनौती बन सकता है.
#बैठकपुराण जंबूसर: कांग्रेस के ‘संजय दृष्टि’ के खिलाफ भाजपा नए या पुराने नेता के धर्मसंकट में