एक उम्मीदवार के नाम पर पार्टी मैंडेट जारी करती है उसके बाद उम्मीदवार उसी मेंडेट के आधार पर अपनी उम्मीदवारी फॉर्म भरता है. लेकिन कुछ ही देर में उसी पार्टी का एक अन्य उम्मीदवार भी दूसरा मैंडेट लेकर आता है और फॉर्म भर देता है. एक पार्टी, दो प्रत्याशी ऐसी स्थिति में फार्म भरने वाले पहले व्यक्ति का फॉर्म रद्द हो जाता है और दूसरे नंबर पर आने वाला उम्मीदवार चुनाव लड़ता है लेकिन हार का सामना करना पड़ता है. घटना बोटाद विधानसभा सीट की है जहां 2017 के चुनाव में गुजरात की राजनीति का यह यादगार मामला सामने आया था. कभी भावनगर जिले का यह तालुका अब एक जिला बन गया है. इस सामान्य श्रेणी की सीट के तहत कुल 2,90,169 मतदाता पंजीकृत हैं. जिसमें बोटाद शहर, तालुका और गढडा तालुका के कुछ गांव शामिल हैं.
मिजाज
दिग्गज नेता सौरभ पटेल ने ढाई दशक से इस सीट को बीजेपी का गढ़ बना दिया है. वह यहां से पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. गुजरात में भाजपा के उदय से पहले की अधिकांश सीटों की तरह बोटाद में भी कांग्रेस का दबदबा था. जातिगत समीकरणों की राजनीति होने की वजह से पहले किसी भी जाति के मजबूत और अच्छी पकड़ रखने वाला नेता चुनाव जीत जाता था, लेकिन अब तस्वीर बिल्कुल अलग है. इस बार कोई पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि यह सीट बीजेपी को समर्पित रहेगी. इस बात की पूरी संभावना है कि सौरभ पटेल की वजह से यह सीट बीजेपी के लिए चुनौती बनेगी, जिन्होंने एकाधिकार बना लिया है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 सौरभ भाई पटेल भाजपा 8992
2002 सौरभ भाई पटेल भाजपा 33430
2007 सौरभ भाई पटेल भाजपा 3188
2012 ठाकरशी भाई मानिया भाजपा 10005
2017 सौरभ भाई पटेल भाजपा 906
कास्ट फैब्रिक
यहां कास्ट फैक्टर अपेक्षाकृत जटिल है. यहां कोली और पाटीदार समुदाय की आबादी लगभग बराबर है. कोली 60-65 हजार और पाटीदार 50-55 हजार के आसपास हैं. सथवारा समुदाय की आबादी भी 30-35 हजार है. इसके अलावा, प्रजापति और काठी क्षत्रिय समुदाय भी महत्वपूर्ण हैं. यदि पाटीदार या कोली उम्मीदवार के खिलाफ अन्य जाति समुदायों के समीकरणों को संतुलित किया जा सकता है, तो इस सीट पर कांटे की टक्कर हो सकती है.
समस्या
नब्बे के दशक में हीरा उद्योग में उछाल के बाद भावनगर के बाद बोटाद का एक प्रमुख रोजगार केंद्र बनने की संभावनाएं थीं. लेकिन यह इलाका सूरत के हीरा उद्योग से जुड़ा होने के बावजूद यहां के हीरा उद्योग को बढ़ावा देने की बात पर अमल नहीं हो सका. इस वजह से स्थानीय स्तर पर ज्यादा रोजगार नहीं है. इसलिए गांव उजड़ रहे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि तमाम सरकारी दावों के बावजूद खेती में सिंचाई और बिजली की समस्या आज भी है.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
यहां पांच बार निर्वाचित हुए सौरभ पटेल एक उच्च शिक्षित नेता के रूप में जाने जाते हैं, जिनका पारिवारिक संबंध शीर्ष उद्योगपतियों से है. वित्त और ऊर्जा मंत्रालय जैसी जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं. स्थानीय स्तर पर उनकी पकड़ मजबूत है. लेकिन अब उनको ढलता हुआ सितारा माना जा रहा है. ढाई दशक तक यहां प्रतिनिधित्व करने के बाद भी भाजपा कार्यकर्ता अब उन्हें आयातित उम्मीदवार बता रहे हैं और स्थानीय उम्मीदवार की मांग जोर पकड़ रही है. इसलिए माना जा रहा है कि इस बार उनका पत्ता कट जाएगा. उनकी जगह डॉ. टीडी माणिया की उम्मीदवारी मजबूत है. इलाके के एक नामी धार्मिक संस्था के प्रशासक के बारे में भी कहा जाता है कि वह भी बीजेपी के टिकट के लिए होड़ में है.
प्रतियोगी कौन?
2017 में कांग्रेस ने पहले मनहर पटेल को इस सीट के लिए मैंडेट दिया था और फिर दूसरा मैंडेट धीरजलाल कलथिया को भी दिया गया था. जिसके बाद मनहर पटेल को अयोग्य घोषित कर दिया गया और धीरजलाल कलथिया 906 मतों से हार गए. ऐसे शर्मनाक बंटवारे के बाद अब कांग्रेस इस बार सीट जीतने की पूरी कोशिश कर रही है. मनहर पटेल की उम्मीदवारी कांग्रेस से सबसे मजबूत मानी जा रही है. उन्होंने पिछले पांच वर्षों के दौरान किसानों की समस्याओं को दूर करने का भी प्रयास किया है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी के अधिकांश स्थानीय कार्यकर्ता भाजपा, कांग्रेस से असंतुष्ट हैं, लेकिन पूरे निर्वाचन क्षेत्र में अधिक प्रभाव नहीं दिखता है. हालांकि, तालुका पंचायत चुनाव में आम आदमी पार्टी को दो सीटें मिली थीं. लेकिन इन सबके बीच विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई की संभावना है.
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