वहां न तो रेशम का उत्पादन होता है और न ही कपड़े का, फिर भी उमरेठ साड़ियों का शहर, सिल्क सिटी के नाम से पूरे गुजरात में प्रसिद्ध है. चरोतर और वडोदरा के आसपास के ग्रामीण इलाकों में जब लड़कियों की शादी होती है तो उमरेठ से साड़ी खरीदने के लिए वहां का दौरा अनिवार्य माना जाता है. शहर की चारों दिशाओं में बड़ी और प्राचीन झीलों वाला यह शहर पाटनरेश सिद्धराज जय सिंह की माँ मीनलदेवी का था, सात मंजिला भद्रकाली वावा आज भी मौजूद है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस शेलत और प्रख्यात शिक्षाविद् विष्णु प्रसाद त्रिवेदी, यशवंत शुक्ला उमरेठ के मूल निवासी थे. उसी धारा के साथ बहने की प्रमुख प्रवृत्ति के कारण उमरेठ का गुजरात की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान है और इसकी सीट संख्या 111 है. उमरेठ शहर और तालुका और आनंद तालुका के कुछ गांवों के साथ इस सीट पर मतदाताओं की संख्या 2,72,388 है.
मिजाज
उमरेठ विधानसभा सीट, जो गुजरात राज्य के गठन और पहले चुनावों के बाद से अस्तित्व में है, काफी हद तक कांग्रेस समर्थक मूड बनाए रखा है. यहां बीजेपी को सिर्फ दो बार सफलता मिली है. आनंद जिला के दिग्गज नेता भाईलाल पटेल के प्रभाव के कारण दो चुनाव में स्वतंत्र पक्ष के उम्मीदवार को चुनाव जिताया तभी से उमरेठ ने सत्ता-विरोधी मूड बनाए रखा है. आज भी पूरे गुजरात के सियासी तेवर से अलग रवैया दिखाने के लिए उमरेठ का मिजाज साबित होता है. वर्ष 2002 को छोड़कर, यहां जीत और हार बहुत ही कम अंतर से जारी है. इसलिए हर पार्टी के उम्मीदवार को नामांकन से लेकर अंतिम दौर की मतगणना तक तनाव में रखना उमरेठ का मिजाज है.
रिकॉर्ड बुक
साल विजेता पार्टी मार्जिन
1998 सुभाष चंद्र शेलत कांग्रेस 2478
2002 विष्णुभाई पटेल भाजपा 15370
2007 लाल सिंह वडोदिया कांग्रेस 4114
2012 जयंत पटेल (बोस्की) राकांपा 1394
2017 गोविंदभाई परमार बीजेपी 1883
कास्ट फैब्रिक
लगभग 70,000 क्षत्रिय और 40,000 पाटीदार मतदाताओं के साथ, इस निर्वाचन क्षेत्र में दलितों, मुसलमानों और आदिवासियों की संयुक्त आबादी प्रतिशत 6% है. इसलिए दोनों पार्टियां क्षत्रिय उम्मीदवारों को टिकट देती हैं, जिसकी वजह से दलित और मुस्लिम मतदाता इस परिस्थिति में महत्वपूर्ण हो जाते हैं. चूंकि क्षत्रिय मतदाता एकजुट नहीं हैं, इसलिए यहां पाटीदार उम्मीदवार भी जीत सकते हैं.
समस्या
साड़ी की बिक्री का हब कहे जाने के बावजूद यहां के व्यापार को बढ़ावा देने की योजना का पूरी तरह अभाव है. अहमदाबाद और सूरत की तर्ज पर यहां के बाजार को विकसित करने की बात चुनाव के अलावा कभी नहीं सुनी जाती. उच्च शिक्षण संस्थानों का अभाव है. चार झीलों के किनारे स्थित होने के बावजूद, उमरेठ में पीने योग्य पानी की कमी खराब योजना का प्रमाण है. ममरां, पौआ की बड़ी संख्या में फैक्ट्रियां हैं लेकिन इस उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए वातावरण या योजनाओं की कमी है. विकास की अपार संभावनाएं होते हुए भी दूरदर्शिता के अभाव में वह विकास नहीं हो पाया जो होना चाहिए था.
मौजूदा विधायक का रिपोर्ट कार्ड
पिछले चुनाव में कांग्रेस की महिला उम्मीदवार कपिला बेन चावड़ा के खिलाफ मामूली अंतर से जीत हासिल करने वाले बीजेपी के गोविंद परमार खुद की पार्टी से आनंद के सांसद मितेश पटेल से नाराज बताए जा रहे हैं. राज्यसभा सदस्य और पूर्व विधायक लाल सिंह वडोदिया अगर पार्टी पर दबाव नहीं डाले तो गोविंद परमार को टिकट मिलने की संभावना कम है. इस स्थिति में नगर पालिका अध्यक्ष संगीताबेन पटेल या लालसिंह के परिवार से किसी का नाम सामने आ सकता है. हालांकि, आंतरिक गुटबाजी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
प्रतियोगी कौन?
इस सीट पर कांग्रेस का अच्छा संगठन है. कांग्रेस ने स्थानीय निकायों और तालुका पंचायतों में भी अपना वोट बैंक बरकरार रखा था. हालांकि, अगर कांग्रेस और एनसीपी के बीच गठबंधन होता है तो संभावना है कि यह सीट एनसीपी के गुजरात अध्यक्ष जयंत पटेल बोस्की के खाते में जाएगी. 2012 में मामूली अंतर से जीत के बाद भी उन्होंने स्थानीय स्तर पर अपनी पकड़ बनाए रखी है लेकिन ‘सही समय पर कई वजहों से’ बीजेपी का पक्ष लेने की छवि उन्हें नुकसान पहुंचा सकती है.
तीसरा कारक
आम आदमी पार्टी ने यहां कार्यक्रम आयोजित किए हैं. पार्टी ने यहां से अमरीश पटेल को उम्मीदवार घोषित किया है. वह स्थानीय स्तर पर अच्छा संपर्क रखते हैं. लेकिन वह किसे फायदा पहुंचाएंगे और किसे नुकसान यह तो आने वाला समय बताएगा.
#बैठकपुराण वागरा: कांग्रेस के गढ़ में भाजपा सेंध लगाने में हो चुकी है कामयाब