नई दिल्ली: आज पूरा देश विजय दिवस मना रहा है. आज ही के दिन 1971 में भारत को हराने आयी पाकिस्तान की एक बड़ी सेना को हमारे मुट्ठी भर सैनिकों ने करार जवाब दिया था. 1971 के युद्ध में भारत को पाकिस्तान से करारी हार का सामना करना पड़ा था. उसके बाद पूर्वी पाकिस्तान को भी आजादी मिली जिसे आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है. इस लड़ाई के बाद पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी को अपनी सेना के लगभग 93,000 सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा था. यह लड़ाई भारत के लिए ऐतिहासिक साबित हुई और हर देशवासी के मन में उत्साह पैदा कर दिया.
उस समय बांग्लादेश का अस्तित्व नहीं था. पाकिस्तान दो हिस्सों में बंटा हुआ था. पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान. 3 दिसम्बर 1970 को पाकिस्तान में आम चुनाव हुए, पूर्वी पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टी अवामी लीग ने 69 में से 167 सीटें जीतीं और इस तरह पाकिस्तान की 313 सदस्यीय संसद मजलिस-ए-शूरा में भी बहुमत हासिल किया. अवामी लीग के नेता शेख मुजीब उर रहमान ने सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा जिसे पीपीपी नेता जुल्फिकार अली भुट्टो ने स्वीकार नहीं किया. उसके बाद याहया खान ने पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोहियों को कुचलने के लिए पश्चिमी पाकिस्तान के कमांडर-इन-चीफ को आदेश जारी किए.
25 मार्च 1971 को, पाकिस्तानी सेना ने ढाका और उसके आसपास अभियान शुरू किया. पाकिस्तान ने इसे ऑपरेशन सर्च लाइट नाम दिया. इस ऑपरेशन की वजह से पूर्वी पाकिस्तान में काफी हिंसा हुई थी. बांग्लादेश सरकार के मुताबिक इस दौरान करीब 30 लाख लोग मारे गए थे. हालाँकि, पाकिस्तान सरकार द्वारा गठित हमिदुर्रहमान आयोग ने इस अवधि के दौरान केवल 26,000 मौतों की पुष्टि की थी.
1971 के युद्ध की रणनीति बनाने में 3 भारतीय अधिकारियों ने निभाई भूमिका
1971 के युद्ध की रणनीति में सैम मानेकशा, जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा, जनरल जेएफआर जैकब का अहम योगदान रहा. मेजर जनरल जैकब ने 1971 के युद्ध के लिए आंदोलन की रणनीति तैयार की. जिसके तहत भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना के कब्जे वाले शहरों को छोड़कर वैकल्पिक मार्ग से भेजा गया था. जैकब को भारत ही नहीं बल्कि बांग्लादेश में भी कई सम्मानों से नवाजा गया था. 16 दिसंबर 1971 को, फील्ड मार्शल मानेकशा ने लेफ्टिनेंट जनरल जैकब को ढाका जाने और पाकिस्तान के आत्मसमर्पण की तैयारी करने का आदेश दिया था.
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